Wednesday, August 27, 2008

संत कबीर वाणी:अपने महल पर गर्व करना व्यर्थ

कबीर गर्व न कीजिए, ऊंचा देखि आवास
काल परौं भूईं लेटना, ऊपर जमसी घास


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं की अपना शानदार मकान और शानशौकत देख कर अपने मन में अभिमान मत पालो जब देह से आत्मा निकल जाती हैं तो देह जमीन पर रख दी जाती है और ऊपर से घास रख दी जाती है।

आज के संदर्भ में व्याख्या-यह कोई नैराश्यवादी विचार नहीं है बल्कि एक सत्य दर्शन है। चाहे अमीर हो या गरीब उसका अंत एक जैसा ही है। अगर इसे समझ लिया जाये तो कभी न तो दिखावटी खुशी होगी न मानसिक संताप। सबमें आत्मा का स्वरूप एक जैसा है पर जो लोग जीवन के सत्य को समझ लेते हैं वह सबके साथ समान व्यवहार करते हैं। हम जब किसी अमीर को देखते हैं तो उसको चमत्कृत दृष्टि से देखते हैं और कोई गरीब हमारे सामने होता है तो उसे हेय दृष्टि से देखते हैं। यह हमारे अज्ञान का प्रतीक है। यह अज्ञान हमारे लिए कष्टकारक होता है। जब थोडा धन आता है तो मन में अंहकार आ जाता है और अगर नहीं होता तो निराशा में घिर जाते हैं और अपने अन्दर मौजूद आत्मा को नहीं जान पाते। यह आत्मा जब हमारी देह से निकल जाता है तो फिर कौन इस शरीर को पूछता है, यह अन्य लोगों की मृतक देह की स्थिति को देख सीख लेना चाहिऐ।
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2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत आभार इस प्रस्तुति का.

पवन मिश्रा said...

क्या बात है दीपक जी, आप तो एकदम छा गए हो भाई. मेरे आल टाइम फेवरेट ब्लोगर हो आप.

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