Saturday, August 16, 2008

संत कबीर वाणीःशीतल गंगाजल पर्वतों को तोड़कर अपना मार्ग बनाता है

कुबुधि कमानी चढ़ि, कुटिल वचन के तीर
भरि भरि मारे कान में, सालै सकल सरीर

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि कटुता पूर्ण वचन बोलना सबसे बुरा है। जिनकी बुद्धि भ्रष्ट है वह ऐसे वचन बोलकर दूसरे के शरीर को दग्ध कर देते हैं।

कुटिल वचन सबतें बुरा, जारि करै सब छार
सांधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार

संत शिरोमणि कबीरदास जी के अनुसार दुष्ट लोगों के वचन बहुत दुःखदायी होते और उनको सुनकर पुरा शरीर जल जाता है परंतु साधुओं के वचन जल के समान अत्यंत शीतल हैं और ऐसा लगता है जैसे अमृत बरस रहा हो।

कुटिल बचन नहिं बोलिये, शीतल बैन ले चीन्हि
गंगा जल शीतल भया, परबत फोड़ा तीन्हि


संत शिरोमणि कबीर दास जी के अनुसार कटु वचन कभी नहीं बोलना चाहिये। हृदय के शीतलता प्रदान करने वाले वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए। गंगा जल कितना शीतल होता है जो पर्वतों को तोड़कर अपना मार्ग बनाता है।
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