ज्यों नर डारत वमन कर, स्वाद स्वाद सों खाय
कविवर रहीम कहते हैं कि जैसे कोई आदमी उल्टी कर देता है पर श्वान उसे स्वादिष्ट समझकर चाटने लगता है उसी प्रकार के संसार के विषय और भोग विलास का ज्ञानी त्याग देते हैं और मूर्ख उसे ग्रहण करने हैं।
भूप गनत लघू गुनिन को, गुनी गलत लघु भूप
रहिमन गिर तें भूमि लौं, लखो तो एकैं रूप
कविवर रहीम कहते हैं कि राजा लोग अपने राज्य के गुणवानों को हेय दृष्टि से देखते हैं और गुणी तथा ज्ञानी लोग राजा को अपने से छोटा समझते हैं जबकि इस पृथ्वी पर सभी प्राणी एक ही ईश्वर के स्वरूप हैं।
मथन मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय
रहिमन सोई मीत है, भीर परै ठहराय
कविवर रहीम कहते हैं कि जब दही को लगतार मथा जाता है तब उसमें से मक्खन निकल पाता है और दही स्वयं मट्ठा होकर मक्खन को आश्रय देती है। उसी प्रकार सच्चा मित्र वही है जो संकट आने पर मदद करता है।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप
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