Saturday, July 26, 2008

विदुर नीति- अपने कार्य का मंत्र गुप्त रखना ही हितकर

1.जो कभी उद्दण्ड रूप नहीं बनाता, दूसरों के सामने अपने पराक्रम की प्रशंसा नहीं करता तथा क्रोध आने पर भी कटु वाणी में नहीं बोलता उसे सभी लोग प्यार करते हैं।
2.जो मनुष्य अपने शांति हुए वैर की अग्नि फिर से प्रज्जवलित नहंी करता, जिसमें कोई गर्व का भाव नहंी हैं और जो अपने कर्तव्य को विपत्ति नहीं समझता वही सर्वश्रेष्ठ मनुष्य है।
3.जो अपने सुख में प्रसन्न नही होता और दूसरे के दुःख में हर्ष नहीं करता और अपना दान करने के पश्चात अपने मन में संताप नहीं करता वह सदाचारी कहलता है।
4.जो अपने आश्रितों को बांटकर थोड़ा ही भोजन करता है, बहुत अधिक काम करके भी थोड़ा सोता है तथा मांगने पर जो मित्र न होने पर भी देता है उस मनस्वी मनुष्य को अनर्थ दूर से ही छोड़ देते हैं।
5.जिसके अपनी इच्छा के अनुसार दूसरों की इच्छा के विरुद्ध कार्य करने की तरीका दूसरे लोग नहीं जान पाते, तथा जो मनुष्य अपने मंत्र गुप्त रखते हुए अपना कार्य ठीक ढंग से करते हैं उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता।

लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप

2 comments:

Prabhakar Pandey said...

सुपठनीय। सदा सत्य विचार। प्रस्तुति के लिए सादर धन्यवाद।

समयचक्र said...

uttam suvichaar. dhanyawad.

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