Thursday, July 17, 2008

संत कबीर वाणीःजिसने घड़े जैसा मुख दिया वह दाना भी देता है

भूखा भूखा क्या करै, कहा सुनावै लोग
भांड़ा घडिया मुख दिया, सोही पूरन जोग

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं अपने भूख के बारे में दूसरे लोगों को बताने से क्या लाभ? जिस परमात्मा ने घड़े जैसा मुख दिया है वह उसकी भूख की पूर्ति के लिये भोजन भी देगा-इस बात पर विश्वास करना चाहिए।

सिरजन हारे सिरजिया, आटा पानी लीन
देनेहारा देत है, मेटनहारा कौन

संत कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार के सृजनकर्ता परमात्मा ने सबके लिये व्यवस्था की है। वह सभी को आटा पानी और नमक देने वाले हैं। उनकी व्यवस्था को मिटाने वाला कोई नहीं है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-परमात्मा ने सभी जीवों को मुख दिया है तो भोजन की व्यवस्था भी की है, पर आदमी है कि अपनी समस्याओं को रोना दूसरे लोगों के सामने रोता रहता है। इस तरह सभी मनुष्य एक दूसरे की हंसी उड़ाते हैं। मनुष्य तो अपना पूरा जीवन कमाते, खाते और रोते बिता देता है। इस सृष्टि में खाने के मुख हैं तो उसको भरने के लिये परमात्मा ने अन्न, जल और नमक का इंतजाम भी कर दिया है पर आदमी का मन नहीं भरता। वह हमेशा अपने जीवन में कभी भूखों मरने की आशंका से संचय करता जाता है। उसका यह भय कभी समाप्त नहीं होता और संचय की लालसा उसे गोल गोल केवल धन के आसपास घुमाने लगती है। यह भाग्यवादी विचार धारा नहीं है कि परमात्मा ने सभी के खाने का प्रबंध कर दिया है तो उसे फिर कर्म करने की क्या आवश्यकता है?बल्कि अपना कर्म करते हुये यह विश्वास करना चाहिए कि कर्ता तो वह परमात्मा है जिसने यह जीवन दिया है। मनुष्य ने देह प्राप्त तो की है पर अपने मन की लालसाओं के कारण वह धन संग्रह से आगे विचार नहीं करता और अपना पूरा जीवन नष्ट कर देता है। सभी अपना सांसरिक दुःखों का रोना एक दूसरे के सामने रोते हैं जैसे कि वह कर्ता हों। इस तरह सभी एक दूसरे का उपहास भी उड़ाते हैं।

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