Saturday, May 31, 2008

संत कबीर वाणी:क्रोध और अंहकार की अग्नि में जल रहा है संसार

जगत मांहि धोखा घना, अहं क्रोध अरु काल
पोरि पहुंचा मारिये, ऐसा जम का जाल

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं मनुष्य अहंकार, क्रोध तथा कपोल कल्पना में अधिक धोखा खाते हैं। यह यम का एक ऐसा जंजाल है जिसे मन में आते ही मार डालना चाहिए।

दसौं दिसा से क्रोध की, उठी अमरबल आग
सीतल संगत साध की, तहां ऊबरिये भाग

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि दसों दिशाओं में क्रोध की आग लगी हुई है। जहां साधु और संतों की छांव हैं वहीं शांति है। इसलिये भागकर वहीं जाओं तभी शांति मिलेगी।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-पूरे विश्व में शांति के लिए प्रयास हो रहे हैं क्योंकि सभी जगह क्रोध और अहंकार की अग्नि प्रज्जवलित है। अगर यह अग्नि नहीं होती तो फिर शांति के लिए प्रयास ही नहीं होते और फिर कुछ लोगों की रोजी रोटी कैसे चलती? वह समाज के शिखर पर बैठ कर शासन कैसे करते। यह शांति प्रयास केवल एक दिखावा भर है। यह मनुष्य के अंदर स्थित क्रोध और अहंकार की प्रवृत्ति का दोहन करने के लिऐ है। पहले कुछ मनुष्यों को समक्ष उन्हें उत्तेजित करने वाले विषय प्रस्तुत कर दो और वह क्रोध और अहंकार के वशीभूत होकर असामाजिक गतिविधियों में लिप्त होकर दूसरे मनुष्यों में भय उत्पन्न करें और फिर उनको सांत्वना देने के लिये शांति प्रयास किये जायें-यही कर रहे हैं पेशेवर समाज सेवक।

अपने आसपास हो रहे घटनाक्रमों को देखिए। एक क्रोधग्नि के वशीभूत आंखें तरेर रहा है दूसरी तरफ शांति के मसीहा उनसे वार्ता कर रहे हैं। दोनो का काम चल रहा है। कभी कोई विषय समाप्त ही नहीं होता। दोनों की समाज के सामने प्रस्तुत होकर अपनी छबि बनाये हुए हैं। जाति, भाषा, धर्म और वर्गों के आधार पर समाज के लोगों को बांटकर कुछ लोग शासन कर रहे हैं। यह विभाजन एकदम भ्रम है पर लोग हैं कि अपनी कपोल कल्पनाओं में उनको वास्तविकता समझते हैंं। इसका लाभ उठाते हैं पेशेवर समाज सेवक जिनका उद्देश्य ऐसे झगड़ों से आर्थिक लाभ उठाने के साथ समाज में प्रतिष्ठा अर्जित करना भी होता है। अगर हम चाहते हैं कि हमारे आसपास शांति रहे तो भगवान भक्ति और सत्संग में व्यस्त होना चाहिए। अगर हम ऐसे विवादों में आयेंगे तो फिर चर्चा भी ऐसी ही करेंगे और इससे हमारे अंदर ही विकृतियां पैदा होंगी। इसलिये ऐसी चर्चाओं का त्याग कर अपने मन में ध्यान और स्मरण से शुद्धता लाना चाहिए। तब दूसरे लोगों की क्रोध और अहंकार की अग्नि हमें कष्ट नहीं पहंुंचा सकती।

याद रखिये हमारे मन में दूसरों की प्रेरणो से ही क्रोध और अहंकार की अग्नि प्रज्जवलित होती है और अगर हम सत्संग में व्यस्त रहेंगे तो कोई हमें उत्तेजित नहीं कर पायेगा।

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