Saturday, May 24, 2008

भृतहरि शतक: परिवर्तन तो संसार का नियम है

परिवर्तिनि संसारे मृतः को वा न जायते
स जातो येन जातेन याति वंशः समुन्नतिम्

हिंदी में भावार्थ-परिवर्तन होते रहना संसार का नियम। जो पैदा हुआ है उसकी मृत्यु होना निश्चित है। जन्म लेना उसका ही सार्थक है जो अपने कुल की प्रतिष्ठा में वृद्धि करता है अर्थात समस्त समाज के लिये ऐसे काम करता है जिससे सभी का हित होता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-अगर आदमी को किसी से भय लगता है तो वह अपने आसपास परिवर्तन आने के भय से। कहीं भाषा तो कहीं धर्म और कहीं क्षेत्र के विवाद आदमी के हृदय में व्याप्त इसी भय की भावना का दोहन करने की दृष्टि से उनके मुखिया उपयोग करते हैं।कई लोगों के हृदय में ऐसे भाव आते है जैसे- अगर पास का मकान बिक गया तो लगता है कि पता नहीं कौन लोग वहां रहने आयेंगे और हमसे संबंध अच्छे रखेंगे कि नहीं। उसी तरह कई लोग स्थान परिवर्तन करते हुए भय से ग्रस्त होते हैं कि पता नहीं कि वहां किस तरह के लोग मिलेंगे। जाति के आधार पर किसी दूसरे जाति वाले का भय पैदा किया जाता है कि अमुक जाति का व्यक्ति अगर यहां आ गया तो हमारे लिए विपत्ति खड़ी कर सकता है। अपने क्षेत्र में दूसरे क्षेत्र से आये व्यक्ति का भय पैदा किया जाता है कि अगर वह यहंा जम गया तो हमारा अस्तित्व खत्म कर देगा।

ऐसे भाव लाने का कोई औचित्य नहीं है। यह मान लेना चाहिए कि परिवर्तन आयेगा। आज हम जहां हैं वहां कल कोई अन्य व्यक्ति आयेगा। जहां हम आज हैं वह पहले कोई अन्य था। कई परिवर्तनों की अनुभूति तो हमें हो ही नहीं पाती। बचपन के मित्र युवावस्था में नहीं होते। युवावस्था के मित्र नौकरी में साथ नहीं होते। इस संसार में समय का चक्र घूमता है और उसमें परिवर्तन तो होते ही रहना है और हमें उनको दृष्टा होकर देखना चाहिए।

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