मध्र्यदिनाऽर्धरात्रे श्राद्धं भुक्तं च सामिषम्
सन्ध्ययोरुभयोश्चव न सेवेत चतुष्पथम्
दोपहर, आधी रात और दोनों संध्याओं के समय एवं श्राद्ध में मांस का भोजन कर बाजार में चौराहे पर अधिक समय तक नहीं घूमना चाहिए।
न स्नानपाचरद्भुत्वा नातुरा न कहानिशि
न वासोभिःसहाजस्त्रं नाऽविज्ञाते जलाशये
भोजन करने के बाद, रोगी होने, आधी रात के समय, कपड़े पहनकर गहरे पानी और उस सरोवर में नहीं नहाना चाहिए जिसके बारे में ज्ञान न हो।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-अक्सर खाना खाने के बाद लोग घर से बाहर बाजारों में घूमने चले जाते हैं। कुछ लोग बाहर निकलकर सिगरेट, तंबाकू और उसकी पुडिया को खाने ऐसी जगहों पर चले जाते है जहां उनको लोग मिलते हैं। वैसे मनु जी ने यहां शायद इसलिये चौराहे शब्द उपयोग किया है क्योंकि गांवों और शहरों में चौराहों पर अधिकतर दुकाने आदि हुआ करतीं थीं। लगभग आज भी वैसी ही स्थिति है पर सब जगह चौराहे नहीं है और यहां हम बाजार को भी चौराहे के रूप में मान सकते हैं। लोग खाना खाने के बाद लंबे समय तक वहीं खड़े बातचीत में लगे रहते हैं। खाना खाने के बाद बाहर घूमने के बहाने बाहर लोग आपस में वही दुनियावी बातें करते है। जो दिनभर करते हैं। खाने के बाद भोजन को पचाने के लिये देह में कई रसायन होते हैं और इस तरह की कुछ क्रियाएं जो हम करते हैं उन रसायनों के मूल तत्व को नष्ट कर देतीं हैं। हम बातें करते है या घूमते हैं तो हमारे मस्तिष्क की धमनियों पर प्रभाव होता है और संभवत उससे खाने की पाचन क्रिया पर प्रभाव पड़ता है। आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान इस बात की पुष्टि करता है कि चिंता से भोजन की पाचन क्रिया पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अतः मनु जी के संदेश का महत्व हम समझ सकते हैं।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
2 comments:
ये तो सोचने वाली बात है।
आभार इस ज्ञान के लिये.
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