Thursday, April 17, 2008

संत कबीर वाणी:सम्मान पाने की इच्छा श्वान का लक्षण

मान बढ़ाई जगत में, कुकर की पहचान
प्यार किए मुख चाटई, बैर किए तन हान


संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सम्मान पाने की इच्छा तो श्वान के लक्षण है। प्यार करने पर वह मुख चाटने लगता है और फटकारने पर काट लेता है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आधुनिक स्वास्थ्य विज्ञान के अनुसार तो श्वान का चाटना भी रैबीज पैदा कर देता है और अधिकतर लोगों को रैबीज होता ही उन लोगों को है जो कुता पालते हैं। कबीर दास जी न यह दोहा व्यंजना विधा में कहा है जिसका आशय यह है कि आदमी में अपना सम्मान पाने का मोह उसकी तरह ही होता है। संसार में सभी लोग आत्मप्रवंचना में लगे हैं। मैने कई जगह देखा है कि जैसे मैं अपने भाई की बात करूं तो सामने वाला भी अपने भाई की बात शुरू कर देता है। मैं अपने किसी व्यापारी दोस्त की बात करूं तो सामने वाला अपने किसी व्यापारी दोस्त की बात शुरू कर देता है। मैं किसी अधिकारी दोस्त की बात करूं तो वह भी अपने अधिकारी दोस्त की बात कर देता है।

सच बात तो यह है कई बार तो ऐसा लगता है कि लोगों से बात करने की बजाय तो किसी रचनात्मक काम में लगा जाये। हम जो बात कहें उसे कोई सुने ही नहीं तो कहने से क्या फायदा? सब लोग केवल अपने मूंह से अपनी बड़ाई करते हैं। मैं अमुक को जानता हूं, अमुक मेरी इज्जत करता है। ऐसी बातें हास्यास्पद होती है। सब जानते हैं पर अपने बोलने को अवसर आने पर सब भूल जाते हैं। ऐसे में कबीर का यह दोहा जो पढ़ कर अपने मन में धारण कर लेगा वह अपने मूंह से कभी भी अपनी बड़ा ई नहीं करेगा।

अधिकतर लोगों का व्यवहार भी अजीब होता है कोई भी उनके मूंह पर झूठी तारीफ कर दे तो वह बहुत खुश हो जाते हैं और कोई उनका दुर्गुण बता दे तो उग्र हो जाते हैं। ऐसे व्यवहार से सब एक दूसरे पर हंसते हैं पर अपने पर नियंत्रण नहीं करते।

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