अति को भला न बोलना, अति की भली न चुप
अति को भलो न बरसनो, अति की भली न धुप्प
संत शिरामणि कबीरदास जी कहते हैं कि न तो अधिक बोलना चाहिए न एकदम चुप रहना चाहिए। समयानुसार अपने अंदर बदलाव करना चाहिए। कभी न तो एकदम क्रोध करना चाहिए न ही एकदम घबड़ा कर बैठ जाना चाहिए। किसी काम में न तो उतावली दिखाना चाहिए और न ही विलंब करना चाहिए।
ज्ञानी को ज्ञानी मिले, रस की लूटम लूट
ज्ञानी अज्ञानी मिर्ल, होवे माथा फूट
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि जब कोई एक ज्ञानी दूसरे को मिलता है तो दोनों को आनंद मिलता है और वह एक दूसरे के ज्ञान के रस को आनंद उठाते हैं। जब कहीं मूर्खों और अज्ञानियों को मेल होता है तो उनके जमकर वाद-विवाद होता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आजकल लोग कामकाज के सिलसिले में अपने घरों से दूर रहते हैं तो अधिकतर को अपना जीवन अकेले ही दूसरों के साथ व्यतीत करना पड़ता है और नित नये लोगों से संपर्क होता है। ऐसे में अपने व्यवहार में अधिक सतर्कता बरतना चाहिए। न तो किसी से अधिक बोलना चाहिए क्योंकि वह आपकी कमी का लाभ उठाकर आपको हानि पहुंचा सकता है और न ही किसी से डरना चाहिए क्योंकि उसको देखकर कोई भी आपसे अधर्म का कार्य करा सकता है। जहां तक हो सके अपने से अधिक ज्ञानियों के बीच उठना-बैठना चाहिए ताकि उनसे ज्ञान रस प्राप्त किया जा सके अज्ञानियों के साथ संपर्क से तो वाद विवाद और मारपीट होने का भय रहता है।
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
वृत्तियों का निरोध (सर्वथा रुक ज...
3 years ago
1 comment:
अतिर्दानो बलिर्बद्धो अति मानात सुयोधन
.............. अति सर्वत्र वर्ज्येत
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