Sunday, April 13, 2008

रहीम के दोहे: मनुष्य को आत्मसम्मान के साथ जीना चाहिए

मान सहित विष खाय के, संभु जगदीस
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायी सीस

कविवर रहीम कहते हैं कि सम्मान के साथ शिव जी विष उदरस्थ किया तो जगदीश कहलाये पर बिना मान के राहु ने अमृत पिया तो अपना सिर कटवा लिया।
मान सरोवर ही मिले, हंसनि मुक्ता भोग
सफरनि भरे रहीम सर, बस-बालकनहिं जोग

कविवर रहीम कहते हैं कि हंस तो केवल मानसरोवर में ही मोती चुन कर खाता है और सीपियों से भरे हुए तालाब तो केवल बगुले उसके बालकों के लिये ही होते है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आज के भौतिक प्रधान युग में कई लोगों के पास ढेर सारी सुखसुविधा है तो दूसरी तरफ लोगों के पास रोटी खाने के लाले भी है। ऐसे में हम अक्सर सुनते हैं कि अमुक आदमी अमुक किसी बड़े व्यक्ति का चमचा है। दरअसल आजकल लोग अपनी कुछ ऐसी सुविधाओं को उन लोगों से बांटते है जो उनके इर्द-गिर्द फिरते हैं। अगर कोई अमीर घर का लड़का है तो उसके साथ चार ऐसे भी होंगे जो उसकी मोटर सायकल या कार की वजह से उसके मित्र होंगे। हालांकि इस मित्रता की वजह से उनको अपना सम्मान खोना पड़ता है। इसी तरह अमीर और बड़े घर के स्त्री पुरुष भी अपने से छोटे और गरीब घरों के लोगों से मन बहलाने के लिये मित्रता कर लेते हैं। इसके लिये वह अपनी सुविधाओं का इस्तेमाल इस तरह करते हैं कि उसका थोड़ा लाभ लेकर गरीब और छोटे घरों के लोग उनकी मुफ्त में चाकरी करते रहे। कई बार हम में से ही कई लोग ऐसे इस्तेमाल होते हैं।

कई बार बड़े आदमी के घर-परिवार में किसी खास अवसर पर जाने पर वहां हम भोजन करते हैं पर ऐसा लगता है कि वहां हमारा कोई सम्मान नहीं है ऐसे में हम जो वस्तु खा रहे हैं वह रोटी विष लगती है। हां ऐसी जगहों पर हमें जाना नहीं चाहिए जहां लगे कि भोजन एक तरह से विष होगा। अपना आत्मसम्मान बचाना हर मनुष्य का कर्तव्य है और इसलिये उसे मनुष्य भी कहा जाता है।

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