Thursday, December 24, 2015

राजसी पुरुष का आवामगमन निर्बाध होना चाहिये-कौटिल्य का अर्थशास्त्र(rajsi Purushon ki Raksha-Kautilya ka Arthshastra)

                           हमारे यहां के प्रचारकर्मी आमतौर से राजसी पदों पर प्रतिष्ठित लोगों के वाहन निकलने पर सामान्य लोगों का आवागमन रोकने का विरोध करते हैं। यह उनका अज्ञान हैै।  कहा जाता है कि राज्यप्रमुख की रक्षा पहरेदारो को उसी तरह करना चाहिये कोई पुरुष स्त्री की करता है। राज्य प्रमुख के जीवन का भय प्रजा के लिये संकट होता है। इसलिये विशिष्ट पदधारी लोगों की रक्षा पर आपत्ति होना ही नहीं चाहिये। प्रचारकर्मियों को चाहिये कि वह राजसी पदवाले लोगों की नीतियों, कार्यक्रमों तथा प्रबंध तक ही अपनी बात रखें। हमारे देश के लोग भी राजसी पुरुषों के रहन सहन व चालचलन से अधिक उनके राज्य के प्रति कर्मो पर अधिक ध्यान देते हैं।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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निर्गमे च प्रवेशो च राजमार्ग समान्ततः।
प्रोत्सारितजनम् गच्छेत्सम्यगाविष्कृतोन्नति।।
           हिन्दी में भावार्थ-राज्य प्रमुख कहीं जाये तो राजमार्ग स्वच्छ कर सामान्य लोगों का आवागमन रोककर सम्मान से गमन करे।
                           अभी दिल्ली में निजी कारों के आवागमन पर समविषम सूत्र लागू करते हुए विशिष्ट राजसी पदों वाले लोगों को उससे मुक्ति दी गयी है।  यह ठीक है इसका विरोध नहीं होना चाहिये। हां, इतना जरूर कह सकते हैं कि राजसी पदों वालों की रक्षा जहां आवश्यक है वहीं यह भी आवश्यक है कि वह सामान्य प्रजा के लिये हितैषी होकर काम करते रहें। उनके यही काम चर्चा का विषय होना चाहिये। यह चिंता की बात है कि आधुनिक लोकतंत्र से राजसी पदों पर आने वाले लोग पुरानी राजसी प्रवृत्ति का शिकार हो रहे है।

दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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Saturday, December 12, 2015

जापान के प्रधानमंत्री की गंगा आरती पर लिखे गये ट्विटर (Twitter on Japani primminister visit's Kashi in Ganga Aarti)


                           जापान का हर नागरिक उस बौद्धधर्म में रमा है जिसका जन्म ही हिन्दू अध्यात्मिक दर्शन से हुआ है। अतः प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी का उसे भारत का निजी मित्र कहना अच्छा लगा। बौद्धधर्मियों का राष्ट्र जापान विश्व में सबसे धनी है तो उसके निवासी भी पराक्रमी है। उनके प्रधानमंत्री शिंजो आबे का भारत में स्वागत है। अगर चीन भी जापान व भारत के साथ धार्मिक आधार पर एकता स्थापित करे तो पश्चिम से निर्यातित आतंक रोका जा सकता है। काशी व क्योटो के बीच सेतु की तरह अध्यात्मिक दर्शन है। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्रमोदी तथा जापान के प्रधानमंत्री शिंजो अबे का बनारस में गंगा की आरती देखने का दृश्य अच्छा लगा। हमारा मानना है कि पश्चिम के देशों से विज्ञान के आधार पर मित्रता करने से अधिक पूर्व के देशों से अध्यात्मिक एकता कायम करना ही बेहतर है।
                           जापान के प्रधानमंत्री की काशीयात्रा से अब तो यह लग रहा है कि भारत को अपनी धार्मिक अध्यात्मिक पहचान के साथ ही विश्व में आगे बढ़ना चाहिये। विश्व के एक धनी देश जापान के प्रधानमंत्री का गंगा के तट पर जाकर आरती देखना इस बात का प्रमाण है कि भारत की पहचान उसके मूल दर्शन से भी है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Wednesday, November 11, 2015

अनुपम खेर के सहिष्णुता मार्च पर ट्विटर (Twitter on Subject march of Anupam Kher) MarchForIndia


            अनुपमखेर के नेतृत्व में देश की प्रतिष्ठा खराब करने वालों के प्रतिकूल  किये गये प्रदर्शन को सहिष्णुता मार्च कहना चाहिये। अनुपमखेर में नेतृत्व में निकलने वाले भारत के लिये मार्च पर सकारात्मक रुख अपनाते हुए उनकी प्रशंसा करना चाहिये। अब यह सवाल तो पूछा ही जायेगा कि एक अभिनेता को देश में असहिष्णु माहौल कैसे दिखेगा जबकि दूसरा उसे नकार रहा है। देश के असहिष्णु माहौल के प्रचार का उत्तर भारत के लिये मार्च से दिया जाना इस बात का प्रमाण है कि देश लोकतांत्रिक रूप से सहिष्णु व परिपक्व है। असहिष्णु वातावरण के प्रचार का भारत के लिये मार्च से जवाब! अनुपम खेरजी की बौद्धिक योजना का जवाब नहीं! इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत के लिये मार्च में एकत्रित भीड़ ने भारत की सहिष्णुता की मर्यादित सीमा भी बता दी है। समस्या यह है कि प्रगतिशील और जनवादी शैली की रचनाओं को राज्य प्रबंध से समर्थन नहीं मिलने वाला। यह कुछ रचनाकार सहन नहीं कर पा रहे।
                                   अनुपमखेर के नेतृत्व में बुद्धिजीवियों के  सहिष्णुता मार्च से भारत की अंतर्राष्ट्रीय पटल पर प्रतिष्ठा बढ़ती है तो अच्छी बात होगी। अनुपम मार्च से  एक बात तय हो गयी कि बौद्धिक दृष्टि से भी सुविधानुसार घटनाओं पर राय कायम की जा सकती है। आपकीबात अनुपम मार्च यह ट्विटर  दिखाई दिया।

भारत में सहिष्णुता के प्रश्न उठाकर कथित बुद्धिमानों ने प्रचार में नाम जरूर पाया पर उनकी छवि देशविरोधी बन रही है। अब तो यह सवाल दिमाग में आता है कि सहिष्णुता का मसला उठाने के पीछे असली वजह क्या है? पर्दे के पीछे का राज बाहर आना चाहिये। आप जोर से चिल्लायें तो यह अभिव्यक्ति का अधिकार है, पर लोग सुनने से इंकार कर दें तो मानना पड़ेगा कि समाज सहिष्णु है। आप चिल्लाकर बोलें यह अभिव्यक्ति का अधिकार है, उसे कोई न सुने यह यह समाज की असहिष्णुता का प्रमाण नहीं हो सकता। समाज में जागरुकता बढ़ी पर चेतना कम हुई है अब कोई कहे तो कहता रहे कि  असहिष्णुता बढ़ी है।
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Monday, November 2, 2015

दक्षिणपंथी और राष्ट्रवादी लेखकों को सम्मान देना आवश्यक(Rashtrawadi Dakishinpanthi Lekhkon ko Samman Dena Awashyak)


                                   इंटरनेट पर अनेक दक्षिणंपथी राष्ट्रवादी लेखक सक्रिय हैं, इस दीपावली पर सम्मानित कर जनमानस के हृदय पटल पर स्थापित किया जाये। हम जैसे अध्यात्मिकवादी लेखक मानते हैं कि इससे सम्मान वापसी कर रहे कथित बुद्धिजीवियों के प्रचार को चुनौती दी सजा सकती है।  इनमें से अनेक तो ऐसे हैं जिनके ब्लॉग है जिनमें किसी सामान्य पुस्तक से अधिक रचनायें हैं। यह लोग निष्काम भाव से काम करते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि उन्हें अब वैसे ही प्रोत्साहन की आवश्यकता है जैसा कि उनके अनुसार ही जनवादियों और प्रगतिशीलों को मिलता है। इनमें से कुछ लोग सम्मान मिलने पर राष्ट्रीय प्रचार पटल पर आ जायेंगे तो उन्हें अपनी बात कहने के लिये व्यापक क्षेत्र मिलेगा। इससे परंपरागत प्रकाशन जगत का महत्व भी कम होगा और वहां लिख कर सम्मानित लोगों का महत्व भी अधिक नहीं रहेगा।
                                   हम अध्यात्मिकवादी लेखक है अंतप्रेरणा से लिख लेते हैं पर दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लेखकों राजसी समर्थन की आवश्यकता प्रतीत हो।  प्रचार माध्यमों में जो सार्वजनिक  बहस होती है वह राजसी कर्म की श्रेणी के होते हैं।  हमारा मानना है कि राजसी कर्म राजसी बुद्धि और साधनों से संपन्न होते हैं। वहां सात्विक तत्व ढूंढना या रखते हुए दिखना स्वयं को धोखा देना है। राजसी कर्म में जस की तस नीति अपनाना ही श्रेयस्कर है। इन दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लेखकों को अपना अभियान जारी रखने के लिये राजसी समर्थन की आवश्यकता है-यह हमारा विचार है। यहां यह भी स्पष्ट कर दें कि हमारा इसमें कोई निजी स्वार्थ नहीं है। न ही हमारा सम्मान पाने के लिये कोई ऐसा लिख रहे हैं।  हां, यह सही है कि दक्षिणपंथी  राष्ट्रवादी लेखकों से अपनी रचनाओं की वजह से करीबी रही है पर इसका मतलब यह नहीं है कि हमारा  उनमें स्वार्थ है।
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Sunday, October 11, 2015

विशेष रविवारीय दीपकबापू वाणी (Super Sundya Deepak Bapu Wani)


तरक्की के पहिये बड़े भारी, रास्ते जाम हो ही जाते हैं।
दीपकबापूभूख से बड़ी लालच, सस्ते काम हो ही जाते हैं।।
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भ्रष्ट इंसान की खोज जारी है, बेफिक्र हैं जिनकी नहीं बारी है।
दीपकबापूविकास की चमक में, काली माया का खेल जारी है।।
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राजसी कर्म में शुद्ध भाव की आस, जैसे बिना इक्के की तास।
दीपकबापू चले पवित्रता की राह, विरले ही करते जगत में वास।।
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Friday, September 25, 2015

ट्विटर पर भारतीय दर्शन पर लिखी गयी सामग्री (Twitter on bhartiya darshan-New post


                                   भारतीय प्राचीन ज्ञान की प्रशंसा व उसके अनुयायी होने का दावा करना तब तक व्यर्थ है जब तक हम पाश्चात्य राज्य प्रबंध नीति अपनाते हैं। जब हम यह कहते हैं कि हमारे प्राचीन ग्रंथ ज्ञान का भंडार है तब प्रगतिशील विद्वान देश के राज्यप्रबंध की कमियां दिखाकर सवाल करते हैं। हमारा अध्यात्मिक दर्शन व्यक्ति में सहजभाव के निर्माण के साथ राज्य प्रबंध के वैज्ञानिक सिद्धांतों से भरा है पर उस पर नहीं चलते। अगर हम भारतीय अध्यात्मिकवादी होने का दावा करते हैं तो यह भी आवश्यक है कि हम उसमें राज्य प्रबंध की बतायी गयी नीतियों भी पर चलें।  हम बात तो अपने प्राचीद दर्शन की करते हैं जबकि जबकि हमारा राज्य  पाश्चात विचार तथा नीतियों  पर आधारित है। यह विरोधाभास ही सबसे बड़ी समस्या है। अंतर्जाल पर भी भारतीय धार्मिक नीतियों से सहमत लोग लिखते हैं पर कोई सम्मानजनक स्थिति न होने से उन्हें निराश भी होना पड़ता है। हां, इतना जरूर है कि इंटरनेट पर जो लोग अपने पाठ लिखने का पूरा आनंद उठाते हैं वह किसी की परवाह नहीं करते।  जिन लोगों को परवाह होती है वह पसंद कम होने या टिप्पणियां कम मिलने से निराश होते हैं। उन्हें इससे बचना चाहिये।
                                   उत्तर प्रदेश में गंगा तथा यमुना में गणेश जी की प्रतिमा  विसर्जित करने पर विवाद चल रहा है। इन दोनों नदियों के प्रदूषित होने की चर्चा से दशकों से चर्चा में है और लग अब इनकी स्वच्छता को लेकर गंभीर हो गये हैं। ऐसे में गंगा तथा यमुना  में गणेश प्रतिमा विसर्जन करने की जिद्द कर प्रशासन से भिड़ने वाले समझ लें कि उन्हें सामान्य हिन्दू का समर्थन नहीं मिल सकता। गणेशजी की भक्ति करना पवित्र काम है पर इससे उनकी प्रतिमा गंगा  और यमुना नदियों  में विसर्जित कर जल प्रदूषित करने का अधिकार नहीं मिल जाता। अगर प्रशासन कहता है कि गणेशजी की प्रतिमा गंगा और यमुना नदी में विसर्जित करना ठीक नहीं तो उसे न मानना अधर्म ही है। गणेशजी विवेक का प्रतीक हैं और उनकी प्रतिमा का गंगा और यमुना  में विसर्जित करने की जिद्द कर प्रशासन से भिड़ना अविवेक का प्रमाण है। वैसे एक प्रश्न तो उठेगा कि सन्यासी रंग के वस्त्र धारण कर गणेशी जी की प्रतिमा गंगा में विसर्जित करने की जिद्द कर कौनसे नियम का पालन कर रहे हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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Monday, September 14, 2015

हिन्दी दिवस पर दीपकबापूवाणी (DeepakBapuWani-Kavita On HindiDiwas)


हृदय धड़के मातृभाषा में, भाव परायी बाज़ार में मत खोलो।
कहें दीपकबापू खुशी हो या गम, निज शब्द हिन्दी में बोलो।।
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दिल के जज़्बात अपने हैं, अपनी जुबां हिन्दी में बोलो।
दीपकबापू हमदर्दी के रास्ते अब अंग्रेजी से मत खोलो।।
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अंग्रेजी में सम्मान कमाया नहीं, आत्मसम्मान भी समाया नहीं।
दीपकबापूअब भी गरीब, खुद की जुबां का भी साया नहीं।
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गोरी जुबां अर्थ की काली, कैसे दिल में अपने डाली।
दीपकबापू हिन्दी में लेते अर्थ, अंग्रेजी में बजाते ताली।
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राजाओं की स्तुति रोज करते, हिन्दीदिवस पर भी पेट में भोज भरते।
दीपकबापूमातृभाषा के नाम पर, कभी हिंग्लिश के शोज भी करते।।
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हिन्दी के शब्द महंगे नहीं बिकते, इसलिये बाज़ार में कम दिखते।
दीपकबापू अंग्रेजी के सेवक, छद्मरूप में हिंदी की दम दिखते।।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Sunday, September 6, 2015

आपसी संबंधों में प्रतिकारसंधि का महत्व न भूलें-कौटिल्य का अर्थशास्त्र(apsi sambandhon mein paropkarsandhi ka mahtva-economocs of kautilya)

                                   हम अपने दैनिक जीवन में अनेक लोगों के संपर्क में आते हैं।  किन्हीं लोगों का हम उपकार करते हैं तो कोई हमारा करता है पर इसका प्रतिकार कहीं होता है कहंी नहीं।  सामान्य मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह किसी संकट में पड़े साथी, रिश्तेदार या अन्य व्यक्ति की मदद को तत्पर हो जाता है। हम जब समाज की व्यवस्था की बात करते हैं तो वह बनता ही इसलिये है कि लोग एक दूसरे के साथ संबंध सहजता से निभायें।  इसी समाज में कई लोगों की ऐसी प्रवृत्ति भी देखी जाती है कि वह काम निकल जाने के बाद साथी, मित्र और रिश्तेदार से दूध   में से  मक्खी निकालने की भांति संपर्क तोड़ देते हैं। प्रतिकार भाव से रहित ऐसे व्यक्ति अंततः समाज में अविश्वसनीय हो जाते हैं।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
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उपकारं करोम्यस्यं ममाप्येष करिष्यति।
अयञ्वापि प्रतीकारो रामसुग्रीवयोरिव।।
                                   हिन्दी में भावार्थ-मैंने उसका उपकार किया तो  वह भी करेगा-राम सुग्रीव के बीच इसी तरह हुइ संधि प्रतिकार संधि कहलाती है।
मयास्योपकृतं पूर्वे ममाप्येष करिष्यति।
इतिः या क्र्रियते सन्धिः प्रतीकारः स उच्यते।।
                                   हिन्दी में भावार्थ-मैंने पहले उसका उपकार किया तो वह भी मेरा करेगा-इसे प्रतिकार संधि कहा जाता है।
                                   प्रतिकार संधि मैत्री का भी रूप है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह की नहीं जाती वरन् स्वतः भाववश हो जाती है। यह ठीक है कि भाववश लोग एक दूसरे जुड़े रहते हैं पर इसका आशय यह कतई नहीं है कि वह परोपकार कर प्रतिकार की अपेक्षा न करें।  निष्काम कर्म या नेकी कर दरिया में डाल का सिद्धांत ज्ञानी अपनाते हैं पर इस संसार में सभी ऐसे नहीं होते। अतः जिन लोगों को अपनी समाज मेें गरिमा बनाये रखना र्है वह परोपकार कर कोई भले ही याचना न करे पर लाभ लेने वाले को उसका प्रतिकार करने के लिये तत्पर होना चाहिये।  अगर वह ऐसा नहीं करता तो परोपकार करने वाला निराश हो जाता है और कालांतर में काम करने पर मुंह भी फेर सकता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
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Saturday, August 29, 2015

अंतर्जाल पर प्रहारात्मक रूप से अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी अधिक प्रभावी-हिन्दी दिवस पर विशेष लेख(hindi batter than inglish on internet-special hindi article on hindi diwas)

                                   ट्विटर, फेसबुक और ब्लॉग से आठ वषौं के सतत संपर्क से यह अनुभव हुआ है कि भले ही आपकी बात अंग्रेजी में अधिक पढ़ी जाती है पर भारत में समझने के लिये आपका पाठ हिन्दी में होना आवश्यक है।  महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर आक्रामक शैली में शब्द लिखने हों तो अंग्रेजी से अधिक हिन्दी ज्यादा बेहतर भाषा है।  कटु  बात कहने के लिये मधुर शब्द का उपयोग भी व्यंजना भाषा में इस तरह किया जा सकता है कि  ंइसका अनुभव एक ऐसे ट्विटर प्रयोक्ता के खाते से संपर्क होने पर हुआ जो अपनी अंग्रेजी भाषा में लिखी गयी बात से प्रसिद्ध हो रहा है।  उसके अंग्रेजी शब्दों के जवाब में अंग्रेजी टिप्पणियां आती हैं पर जितना आक्रामक शब्द अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी टिप्पणियों के होते हैं।  एक टिप्पणीकर्ता ने तो लिख ही दिया कि अगर अपनी बात ज्यादा प्रभावी बनाना चाहते हो तो हिन्दी में लिखो। वह ट्विटर प्रयोक्ता अंग्रेजी में लिख रहा है पर उसकी आशा के अनुरूप हवा नहीं बन पाती। अगर वह हिन्दी में लिखता तो शायद ज्यादा चर्चित होता। इसलिये हमारी सलाह तो यही है कि जहां तक हो सके अपना हार्दिक प्रभाव बनाने के लिये अधिक से अधिक देवनागरी हिन्दी में लिखे।

140 शब्दों की सीमा से अधिक ट्विटरलौंगर पर लिखना भी दिलचस्प
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इधर ट्विटर ने भी 140 शब्दों से अधिक शब्द लिखने वाले प्रयोक्ताओं  ट्विटलोंगर की सुविधा प्रदान की है। हिन्दी के प्रयोक्ता शायद इसलिये उसका अधिक उपयोग नहीं कर पा रहे क्योंकि उसका प्रचार अधिक नहीं है। हमने जब एक प्रयोक्ता के खाते का भ्रमण किया तब पता लगा कि यह सुविधा मौजूद है। हालांकि हम जैसे ब्लॉग लेखक के लिये यह सुविधा अधिक उपयोगी नहीं है पर जब किसी विशेष विषय पर ट्विटर लिखना हो तो उसका उपयोग कर ही लेते हैं। वैसे ट्विटर पर अधिक लिखना ज्यादा अच्छा नहीं लगता क्योंकि वह लोग लिंक कम ही क्लिक करते हैं।  बहरहाल जो केवल ट्विटर पर अधिक सक्रिय हैं उनके लिये यह लिंक तब अधिक उपयोग हो सकता है जब वह अधिक लिखना चाहते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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Thursday, August 27, 2015

गुजरात में सामूहिक हिंसा की पूर्ण पड़ताल आवश्यक-हिन्दी लेख(Gujrat mein samuhik hinsa ki poorn padtal aawashyak-hindi article)


                                   गुजरात में जिस तरह एकदम सामूहिक हिंसा हुई उससे लगता है कि कुछ लोग इसके लिये तैयार बैठे थे। इस हिंसा के लिये किसी खास समुदाय पर आक्षेप करना ठीक नहीं लगता। अगर प्रचार माध्यमों तथा समाचार पत्रों की बात माने तो वहां तमाम वर्ग के लोग इस हिंसा में शामिल रहे हैं।  गोधरा में रेल यात्रियों की  हत्या के बाद हुई हिंसा में भी सभी धर्मों के लोगों पर हमले हुए थे पर यह अलग बात है कि एक विशेष धर्म के लोगों के शिकार होने की अधिक चर्चा होती रहीं। आमतौर से गुजरात में बारह तेरह वर्ष पूर्व में सांप्रदायिक दंगे होना आम बात थी पर बाद में वह थम गयी।  हमारे विचार से कुछ असामाजिक तत्व वहां अपनी हिंसा और लूटपाट का अपना पुराना सपना पूरा करने के लिये लंबे समय से इंतजार में थे।  इसलिये वहां के जिम्मेदार नेताओं को अपने आंदोलन चलाते समय इसपर ध्यान देना चाहिये।  यहां यह भी बता दें कि एक खास समुदाय के सहारे पूरे देश की चुनावी राजनीति में छा जाने की संभावना नहीं रहती।
                                   वैसे हमारा मानना है कि सरकारी सेवाओं में व्यक्तिगत योग्यता के साथ ही प्रबंध कौशल की कला में शामिल लोगों को ही उच्च पदों पर नियुक्त करना चाहिये।  देश के विकास के लिये यह आवश्यक है कि सरकारी सेवायें व्यवसायिक ढंग से काम करें और बिना योग्यता और कौशल यह संभव नहीं है। हम यह देख रहे हैं कि सरकारी कार्य में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ रही है पर वहां आरक्षण का नियम काम नहंी करता।  जब हम राजकीय प्रबंध में निजी क्षेत्र की भागीदारी का सिद्धांत मान रहे हैं तो राजकीय सेवाओं में निजी योग्यता और प्रबंध कौशल की आवश्यकता खारिज नहीं किया जा सकता।
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Wednesday, August 19, 2015

पाकिस्तान कड़े संदेश मिलने के भय से घबड़ा रहा है-हिन्दी लेख(kade sandesh milne se bhaybhit pakistan-hindi lekh)


                                   पाकिस्तान इस समय भारत से सुरक्षा सलाहकारों की वार्ता से बचना चाहता है।  उसकी स्थिति कुछ इस तरह है जैसे अदालत का समन मिलने से किसी ऐसे सभ्रांत नागरिक की होती है जिस पर किसी ने मामला दर्ज किया हो-कभी कभी गवाह के रूप में अदालत का समन मिलने से भी लोग घबड़ा जाते हैं।  दोनों के सुरक्षा सलाहकारों की बैठक एक तरह से एक अपराधी की पेशी किसी पुलिस अधिकारी के सामने उपस्थिति जैसी है।  भारत के सुरक्षा सलाहकार पुलिस की भूमिका में है और पाकिस्तान के दूत को उनके सामने अपराधी की तरह हाजिर होना पड़ रहा है।  जिस तरह सामान्य व्यक्ति पुलिस या अदालत से बचने के लिये कोई न कोई उपाय करता है वैसे ही पाकिस्तान सीमा पर हमले करने के साथ ही अन्य उपाय भी कर रहा है।  संभवतः उसे आशंका है कि इस बातचीत में भारत कहीं उसे ऐसे सत्य न कहे जिससे बचा जाना चाहिये।  अभी तक उसे कड़े संदेश हमेशा मीडिया में मिले हैं पर इस बार उसे आशंका है कि भारत में बदलाव होने से  कहीं ऐसा न हो जाये कि औपचारिक या आधिकारिक रूप से कड़ी बात सुनने को  मिले और उसके अनुरूप काम करना पड़े। जब तक नहीं मिले हैं तब तक टालमटोल ही ठीक है।  सभ्रांत आदमी का नियम होता है कि वह बिना चेतावनी के कार्यवाही नहीं करता।  अगर वह ऐसा करता है तो दुनियां उसे ताने देती है। पाकिस्तान को लगता है कि सभ्रांत भारत को चेतावनी देने का अवसर ही नहीं दिया जाये ताकि वह ऐसे कार्यवाही करे तो पूरा विश्व उसकी निंदा करे।
                                   पाकिस्तान भारत से बातचीत कराने में इसलिये कतरा रहा है क्योंकि उसे लगता है कि उफा में समझौते के बाद वह कश्मीर मामला नहीं उठा सकेगा। पाकिस्तान अपना दूत भेजने इसेलिये भी डर रहा है क्योंकि उसे आशंका है कि यह बातचीत बेनतीजा रही तो परिणाम खतरनाक होंगे।      हमारा विचार है कि  यह बातचीत होना चाहिये। भारत पाक सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत होने पर इस बार धमकाने और समझाने का सही अवसर मिल सकता है। भारत के सुरक्षासलाहकार डाभोल के समकक्ष पाकिस्तानी सरताज अजीज अत्यंत बौने हैं और यह भय वहां की सेना को सता रहा है। पाकिस्तान को इस बात में भारत बता सकता है कि ब्लूचिस्तान में खुलकर उसके विरुद्ध बिगुल बजाया जा सकता है। इसलिये पाकिस्तान के बातचीत करने के परंपरागत ढंग से हो रहे कुत्सित प्रयासों की परवाह किये बिना भारतीय रणनीतिकारों को अपने प्रयास करना ही चाहिये। मौका मिले तो चार हिस्सों में अनौपचारिक रूप से विभाजित पाकिस्तान पर-पंजाब, सिंध, ब्लूचिस्तार और पख्तूनिस्तान-अपनी मोहर लगा ही देना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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Friday, August 14, 2015

पाकिस्तान के बंटने से ही भारत में शांति होगी-15 अगस्त पर विशेष हिन्दी लेख(dividle pakisan fevoareble for peace in india-special hindi article on 15 AUGUST)


                                   ब्लूचिस्तान टैग से अपने ही फेसबुक और ट्विटर से जाकर कुछ नया देखने की ख्वाहिश हुई।  यह पहला अनुभव था।  कुछ दिन पहले तक हमने कभी किसी शब्द को पूंछ नहीं लगायी थी।  अब जाकर यह अनुभव हुआ कि फेसबुक और ट्विटर से भी अपने ही शब्दों पर पूंछ लगाकर दूसरी जगह जाया जा सकता है। बहरहाल ब्लूचिस्तान शब्द से की गयी खोज से यह पता चला कि वाकई वहां कोई पाकिस्तान प्रेम जैसी कोई बात नहीं है। वहां के लोग आज भी अपना अपना स्वतंत्रता दिवस 11 अगस्त को मनाते हैं।  पाकिस्तान से एकता की बात तो दूर वहां उसके प्रति नफरत का ऐसा भाव है जिससे खत्म नहीं किया जा सकता।  इतना ही नहीं वहां के लोग  भारत से अब भी समर्थन की अपेक्षा रखते हैं। पिछले दिनों पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक लेखक तारिक फतह का साक्षात्कार भारतीय प्रचार माध्यमों में देखा तब यह जानने की इच्छा हुई कि क्या वाकई पाकिस्तान एक संगठित राष्ट्र है या हम ही भ्रम पाले हैं।  फेसबुक में एक जगह तो भारतीय अधिकारी के माध्यम से पाकिस्तान को मिली इस चेतावनी का जिक्र भी था कि अगर फिर मुंबई जैसी घटना हुई तो पाकिस्तान ब्लूचिस्तान से हाथ धो बैठेगा।  फेसबुक पर पाकिस्तान के विरुद्ध जो भावना है उसका भारत लाभ उठा सकता है।
                                   बहरहाल तारिक फतह की बात को सही माने तो भारत 15 अगस्त अपने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ब्लूचिस्तान और सिंध को अलग देश में रूप में मान्यता देकर पाकिस्तान को दबाव में डाले। एक बात तय रही कि पाकिस्तान से अब साठ साल से चल रहे संबंधों पर पुनर्विचार कर उसकी वर्तमान रूप में मान्यता समाप्त करना जरूरी है।  पाकिस्तान में पंजाबी लाबी अन्य तीनो प्रांतों के निवासियों के शोषण पर अपना उत्थान तो कर ही रही है वहां के निवासियों के मानवाधिकारों का भी हनन कर रही है।  हम यह तो मानते हैं कि पाकिस्तान को बांटे बगैर हम अपने देश से अशांति के बादल नहीं छांट सकते। तारिक फतह का यही मानना है कि पाकिस्तान को चार टुकड़ों में बांटने से ही विश्व में शांति होगी।
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Saturday, August 8, 2015

समाचार और धर्म के व्यापारियों का आपसी द्वंद्व-हिन्दी चिंत्तन लेख(war between media and religion businessmen-hindi thought article)

                              
                   सभी हिन्दी प्रचार माध्यम जब किसी प्रतिष्ठत भारतीय धर्म के पेशेवर व्यक्तित्व की छवि खराब करने के लिये संयुक्त शब्द आक्रमण करते हैं तब हम जैसे लोगों के लिये मजाक जैसा वातावरण बन जाता है। प्रचार कर्मी अक्सर कहते हैं कि अमुक व्यक्ति धर्म के नाम पर भोले भाले भक्तों का ठग रहा है।  उस समय हमें लोगों के लोभ या लालच से पनपे अज्ञान की बजाय इन प्रचार कर्मियों पर हंसी आती है।  यह सभी जानते हैं कि भारत में प्रचार माध्यम सैद्धांतिक रूप से  ही स्वतंत्र दिखते हैं पर उनका आर्थिक स्वामित्व दो नंबर ही नहीं वरन् काले धंधे वालों के हाथ में ही है।  एक टीवी चैनल ने ही  बकायदा इस व्यवसाय में उन सफेदपोशों के स्वामित्व को उजागर करने के लिये अभियान के रूप में एक कार्यक्रम प्रारंभ किया है जिनके पास काला पैसा है या उनका धंधा काला है।
                                   भारत में धर्म चर्चा एक व्यवसाय की तरह भी है।  व्यवसाय में ऊंची नीच होता ही है।  इसलिये हिन्दी समाचार प्रसारण व्यवसायियों के अनुचरों को  रोज एक खलनायक विज्ञापनों के बीच समाचारा और बहस की सामग्री प्रसारण के लिये मिल ही जाता है। कभी गोल्डन बाबा, कभी राधे मां तो कभी सारथी बाबा। एक बात मजे की होने के साथ ही संदेहास्पद भी लगती है कि सभी निजी हिन्दी समाचार प्रसारण एक साथ ही एक ही खबर पर हमले करते हैं। कभी कभी तो लगता है कि इन समाचार व्यवसायी  इन पेशेवर धार्मिक गुरु आसान शिकार की तरह  लगते हैं जिसका चाहे जब हमला कर देते हैं। भारत के योग तथा ज्ञान साधकों की इन पेशेवर ठेकेदारों से कोई सहानुभूति नहीं है पर प्रचार माध्यम जिस तरह हल्के विषयों को भी गंभीर और देश के लिये महत्वपूर्ण विषयों को हल्का बनाते हैं वह भी उनको हैरानी काी बात लगती है। इन समाचार माध्यमों में अधिकतर ऐसे विद्वान हैं जो  अंग्रेजी शिक्षा के कारण विदेशी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा धािर्मक विचारधाराओं को श्रेष्ठ मानते हैं। इन विदेशी विचाराधाराओं के पोषक बुद्धिजीवी और प्रचारक जब धर्म के ठेकेदारों की कमाई से चिढ़ते हैं तो हंसी आती है। उनकी कुंठा देखते ही बनती है।
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Monday, August 3, 2015

हर हर महादेव-सावन का माह भक्ति की चाह-हिन्दी लेख(har har mahadev-sawan ka mahin bhakti ka nageena-hindi article

                              सावन के माह  में हर सोमवार  शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिये बड़ी संख्या में भक्त मंदिरामें जाते हैं।  अनेक पाश्चात्य हिन्दी भाषी ही ज्ञानी इसका मजाक बनाते हैं।  जानते हैं क्यों? इन लोगों को लगता है कि इनके प्रचार पर्दे और पत्रों के लिये दर्शक या पाठक कम हो जाते हैं। मूर्ति पूजा या जलाभिषेक का मजाक बनाने वाले भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के बारे में नहीं जानते। खाते हिन्दी से हैं पर माता अंग्रेजी को बताते हैं। पैंट पहनने वालों को सभी कुर्ते पायजामे और धोती वाले गंवार नज़र आते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि मनुष्य के मन का खेल केवल भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में समझा जाता है। इसे अंग्रेजी भक्त कतई नहीं समझ सकते।ं
                              मूर्तियों में भगवान नहीं होता। शिवलिंग पर चढ़ा जल गंगा नहीं होता, यह भी सभी जानते है। मगर जब मूर्ति के आगे कोई मत्थ ठेकता है तो वह अपने मन का शुद्धिकरण कर रहा होता है। शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए उसे मन में गंगा जैसी पवित्रता बहने की अनूभूति होती है।  यही अनूभूति मन को दृढ़ और पवित्र बनाती है। विश्व में धर्म के नाम पर अनेक विचाराधारायें प्रचलित हैं-यह अलग बात है कि सभी को धर्म कहा जाता है जबकि हमारे यहां इसका आशय केवल आचरण, व्यवहार तथा कर्म से ही लिया जाता है। इन विचाराधाराओं में भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा पर दृढ़ता पूर्वक चलने वाले ही सबसे अधिक बुद्धिमान और परिश्रमी माने जाते हैं-आज पूरा विश्व भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियरों का लोहा मानता है जो कि इसका प्रमाण है।
                              इस विषय पर हमने कोई शोध तो नहीं किया योग तथा ज्ञान साधना के अभ्यास से अनेक ऐसी अनुभूतियां हुईं हैं जो अध्यात्मिक विषय पर लिखते हुए हमें आनंद आता है। निरंकार के उपासक होने के बावजूद मंदिरों में जाने पर भी आनंद मिलता है।  मूल बात है मन की जिसे समझने वाले इस बात को जानते हैं कि सांसरिक विषयों में निरंतर सक्रियता के बाद उससे कुछ समय के लिये-ध्यान और पूजा जैसी क्रियाओं से- प्रथक होने पर एक आनंद की अनूभूति होती है। करो तो जानो।
हर हर हर महादेव, जय शिव शंकर
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Friday, July 31, 2015

शिष्यत्व का आनंद उठाये बिना गुरु भाव मिलना संभव नहीं-गुरुपूर्णिमा पर विशेष संदेश(shisyatva ka anand uthaye bina guru bhav milna sambhav nahin-special hindu religion message on guru purnima)

             आज की समस्या यह है कि शिष्यत्व के अभ्यास के बिना लोग गुरु बनना चाहते हैं-उनका ध्येय केवल व्यवसाय करना ही होता है। वह अध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन कर उनके शब्द केवल इसलिये रटते हैं कि दूसरे को सुनाकर गुरु की उपाधि धारण कर लें। ज्ञान को धारण करने की शक्ति का उनमें नितांत अभाव रहता है।  अपने शिष्यों को सार्वजनिक रूप से  काम, क्रोध, मोह, लोभ तथा अहंकार त्यागने का उपदेश देते हैं पर एकांत में साफ कह देते हैं कि भौतिक सामान के बिना संसार नहीं चलता। वह माया के संग्र्रह की प्रेरणा भी देते हैं।  सबसे बड़ी बात यह कि शिष्यत्व का आनंद उठाये बिना अनेक लोग गुरु बन जाते हैं जो स्वयं अपना महत्व नहीं जानते।  हमारा मानना है कि शिष्यत्व का आनंद के अभाव में सच्च गुरु बनने की शक्ति नहीं आती।
            इस गुरु पूर्णिमा के पर्व पर हमारी सलाह है कि  किसी व्यक्ति प्रतिमा या ग्रंथ को गुरु बनायें पर उससे मिले ज्ञान का अभ्यास करें।  ज्ञानी वही है जिसके पास चेतना के साथ धृति यानि धारणा करने की शक्ति है।
                    आजकल हमारे यहां गुरु शिष्य परंपरा के नाम पर पाखंड और व्यापार हो गया है। पहले गुरू से शिक्षा प्राप्त कर शिष्य जीवन पथ पर निकलता तो फिर वह उसके पास वापस जाता था, ऐसी पंरपरा सुनने को नहीं मिलती।  एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की प्रस्तर प्रतिमा से धनुर्विद्या सीखी और दक्षिण में अपना अगूठा उनको दान में दिया जबकि उनकी दैहिक उपस्थिति में शिक्षा पाने वाले अर्जुन ने युद्ध में उनका वध किया।  श्रीमद्भागवत गीता में गुरु सेवा की बात कही गयी है पर इसका आशय केवल अध्यात्मिक शिक्षा तक ही सीमित है।  उसके बाद तो शिष्य जीवन पथ पर निकल जाता है तब दूसरे शिष्य गुरु की सेवा करते हैं। हमारे यहां आजकल के गुरु है उनकी स्थिति यह है कि जीवन पर्यंत गुरु बने रहते हैं पर शिष्य उनके पास से हटना नहीं चाहता-न ही वह उसे मुक्त करना चाहते हैं।
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Thursday, July 23, 2015

उज्जैन में महाकाल में जनदेवता का प्रवेश-हिन्दी चिंत्तन लेख(Ujjain mein mahakal mein jandevata ka pravesh-hindi thought article)

          उज्जैन में महाकाल मंदिर में क्षिप्रा का पानी घुस गया है। भारतीय धार्मिक विचाराधाराओं के विरोधी यह कह सकते हैं कि जो महाकाल अपनी रक्षा नहीं कर सका वह अपने भक्तों की रक्षा क्या करेगा? विदेशी विचाराधारा के प्रचारकों ने अनेक पत्थर की मूर्तियों को तालाब मे डुबोकर इस तरह के तर्क ही दिये।  भारतीय बुद्धिमानों ने भी लकड़ी की मूर्तियां जलाकर यह तर्क दिये कि जो अपने को जलने से नहीं बचा सका वह अपने भक्तों को इस सांसरिक आग से क्या बचायेगा? बहरहाल इस तरह की बहसें धर्म से अधिक अधर्म को ही जन्म देती हैं।
                              भारत की प्राचीन नगरी में स्थित महाकाल के गर्भ में बाढ़ आयी फिर भी वहां प्रतिमायें बची रहीं-उनकी शक्ति का प्रमाण तर्क के रूप में आस्थावान  दे सकते हैं।  इस तरह के विवाद और उनका प्रतिकार करना अज्ञान तथा अहंकार का ही प्रमाण होता है।
                              अध्यात्मिक साधकों के लिये महाकाल के गर्भ गृह में जल देवता के प्रवेश करना पूरे विश्व में भौतिकता के नाम पर प्रकृत्ति से छेड़छाड़ के दुष्परिणाम के अलावा कुछ नहंी है । महाकाल जैसे स्थान अध्यात्मिक साधकों के लिये ध्यान आदि के लिये महत्वपूर्ण स्थान होते हैं।  उनकी आस्था में ज्ञान का पुट भी होता है इसलिये वह मूर्तियों के जल में डूबने से विचलित नहीं होते न ही जलदेवता के चुंगुल से  मुक्त होने पर प्रसन्न होते हैं।
                              उज्जैन भारत की सबसे प्राचीन अध्यात्मिक नगरी है।  महान ग्रंथ श्रीमद्भागवत्  गीता के प्रवर्तक भगवान श्रीकृष्ण के गुरु संदीपनि ऋषि यही निवास करते थे।  यहीं विक्रमादित्य नाम के उस राजा ने राज्य किया जिसे राजधर्म का प्रतीक माना जाता है।  हमारी कामना है कि जल्द ही उज्जैन में सामान्य स्थिति वापस हो। मन में इच्छा तो है कि जल्द ही महाकाल के दरबार में ध्यान कर हम अपनी योग साधना का परीक्षण करें।
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Tuesday, July 14, 2015

क्रिकेट के काले पन्नों पर न्याय की मुहर लगी-हिन्दी चिंत्तन लेख(cricket ke kala panno par nyay ki muhar lagi-hindi thoght article)


                             प्रचार माध्यमों के अनुसार न्यायाधीश मुदगल की क्रिकेट के संबंध में जारी रिपोर्ट से नये क्रिकेट प्रेमियों को चौंका सकती है पर पुराने लोग जानते हैं कि इस खेल की आड़ में बहुत सारे काले कारनामे चलते रहे हैं। स्थिति यह है कि हम तो भारत की क्रिकेट टीम को देश की बजाय भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड यानि बीसीसीआई की टीम मानते हैं।  अनेक बार अपने व्यंग्यों में यह बात लिख चुके हैं कि जीती तो हमारी टीम हारी तो बीसीसीआई मानते हैं। हम जैसे दर्शक देश के प्रति संवेदनशील होने के कारण बीसीसीआई टीम के जीतने पर प्रसन्न होते थे हारती थी तो मन उदास हो जाता था।
                              करीब बारह वर्ष पूर्व जब पहली बार इसमें सट्टेबाजी की बात सामने आयी तब दुःख जरूर हुआ पर हैरानी नहीं हुई। हमने देखा था कि अनेक मैच देश के नाम से खेल रही टीम जीतते हुए हार जाती थी।  उसके बाद मन ऐसा टूटा कि फिर कभी क्रिकेट को कभी देशप्रेम से नहीं जोड़ा।  फिर भी कभी कभी देख ही लेते हैं। अभी हाल ही में विश्व कप प्रतियोगिता आस्ट्रेलिया में हुई थी।  अंतर्जाल पर कुछ लोगों ने स्पष्ट कह दिया था कि यह टीम सेमीफायनल से आगे नहीं जायेगी।   बीसीसीआई की टीम सेमीफायनल तक ठीकठाक चली।  जिस दिन सेमीफायनल था उस दिन भारत के हिन्दी टीवी चैनल ने संकेत दिया कि सट्टेबाजों की फायनल में जगह बनाने वाली टीमों में बीसीसीआई पंसदीदा नहीं है। हमारा दिल बैठ गया।  मैच देखने फिर भी बैठे रहे। एक समय लगा कि बीसीसीआई की टीम सट्टेबाजों की पंसद तोड़कर रहेगी।  फिर लड़खड़ाई और फिर डटकर खेलती दिखी। अंततः ऐसी लड़खड़ाई कि हार ही गयी।  यह जरूर कहा जाता है कि भारत के समाचार टीवी चैनल क्रिकेट से कमाते हैं इसलिये इसमें हो रही काली करतूतों को छिपाते हैं पर उनकी इस बात की प्रशंसा करना चाहिये कि अप्रत्यक्ष रूप से सच कह भी देते हैं। यही कारण है कि हमारा मन इतना कड़ा था कि जैसे ही बीसीसीआई की टीम को हार की तरफ बढ़ते देखा टीवी में चैनल बदल दिया।  उस दिन कोई समाचार चैनल न देखकर टीम की हार के विश्लेषण देखने से बचते रहे। इस बात का अफसोस था कि काहे फिर क्रिकेट से दिल लगाया था।
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Saturday, July 4, 2015

विश्व महागुरु बनने के लिये विज्ञान में आत्मनिर्भरता जरूरी-हिन्दी चिंत्तन लेख(vishwa guru ke liye vigyan atmanirbharta jaroori-hindi thought article)


      हमारा मानना है कि भारत में अगर अंतर्जाल पर गूगल जैसा सक्षम स्वदेशी मस्तिष्क यानि सर्वर बन जाये तो विश्व पटल पर हमारा देश महागुरु बन जायेगा। कुछ उत्साही लोग अपने देश भाारत को विश्व गुरु दोबारा बनाना चाहते है-उनकी बातों ये तो यह लगता है कि  वह मानते हैं कि यह पदवी अब हमारे पास नहीं है-इसलिये तमाम तरह के अभियान चलाते हैं।  हमारे श्रेष्ठ ग्रंथ श्रीमद्भागवत गीता में ज्ञान के साथ विज्ञान को भी महत्व दिया गया है। उसके संदेश के अनुसार तो  तत्वज्ञान में स्थित होकर कर्म से वैराग्य लेने की जाय उसमें तत्पर होकर विज्ञान के साथ जीवन पथ पर विकास करना ही चाहिये।
                              अनेक लोगों को यह भ्रम है कि भारत के तीस चालीस पूंजीपतियों की संपत्ति गुणात्मक रूप से बढ़ने पर से देश विश्व की आर्थिक शक्ति बन जायेगा।  इनमें से भी तीन चार ने अगर विश्व बाज़ार पर कब्जा कर लिया तो भारत ही महाशक्ति कहलायेगा।  उसी तरह कुछ लोगों में यह अंधविश्वास भी है कि दस पांच कथित पेशेवर गुरु विदेशों में जाकर वहां की धार्मिक विचाराधाराऐं मानने वालों में अपने ज्ञान का वाचन करेंगे तो  अभी भी विश्व गुरु कहा जायेगा।  अन्य देशों में जहां वर्तमान में सर्वशक्तिमान के भारतीय स्वरूपों की दरबार  नहीं है वहां बन जाने पर शंख की ध्वनि तथा आरती के स्वर बजने से भारत के ज्ञान की पताका फहरायगी-ऐसे विचार करने का कोई मतलब नहीं।  हमारा मानना है कि किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा तब बढ़ती है उसके पास इतना धन हो जाये जब वह उदारता से दान कर सके।  समाज की प्रतिष्ठा तब बढ़ती है जो न स्वयं आत्मनिर्भर हो वरन् दूसरे समुदाय की भी सहायता करे।  राष्ट्र की प्रतिष्ठा तब बढ़ती है जब ज्ञान, विज्ञान और धन की दृष्टि भरपूर होने के साथ ही दूसरे राष्ट्रों की भी सहायता करे।  हमारे देश में अंतर्जाल पर इतनी निर्भरता बढ़  गयी है पर फिर भी हमारे पास अपना स्वदेशी सर्वर नहीं है।
                              हम अभी भी सामान्य जनजीवन के लिये विदेशों पर आश्रित हैं।  अगर विदेशी कंपनियां किसी दिन बंद हुईं या उनके प्रबंधकों की नाराजगी हुई तो वह अपनी सेवायें बंद कर या बाधिक कर यहां अव्यवस्था फैला सकती हैं।  भारी भरकम पूंजी स्वामी और उच्च तकनीकी विशारद होते हुए भी हम प्रबंध कौशल के अभाव में आगे नहीं बढ़ पाये। हमारे तकनीशियन विदेशों में जाकर नाम कमा रहे हैं क्योंकि उनके लिये यहां  विकास के अवसर नहीं बन पाते।  हमें अपनी आंतरिक समस्याओं से निजात पानी होगी तब विश्व में अपना खोया सम्मान पा सकेंगे।
                              अभी 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया गया। यह हमारे योग साधना ज्ञान की श्रेष्ठता का प्रमाण है पर विज्ञान में श्रेष्ठता के अभाव में हमारा देश अभी बहुत पीछे है। यही कारण है कि हमारे देश के कुछ कुंठित विद्वान विदेशी विचाराधाराओं के वैज्ञानिक होने का दावा करते हैं।  ज्ञान की दृष्टि से भारत हमेशा ही विश्व गुरु रहा है अब तो महागुरु की पदवी धारण करने का समय है।  यह तभी संभव है जब हम आधुनिक तकनीकी के आधार पर न केवल स्वयं आत्मनिर्भर होंगे वरन् दूसरों के सहायक भी बनेंगें।  इसलिये अंतर्जालीय स्वदेशी मस्तिष्क का निर्माण होने के लिये तत्परता से प्रयास किये जाने चाहिये।
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