श्रीमद्भागवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि अक्षरों में परम अक्षर ओम है। अनेक अध्यात्मिक विद्वान भी यह मानते हैं कि ओम शब्द के जाप से देह के समस्त अंग सक्रिय होने के साथ उत्साहित हो उठते हैं। यही कारण है कि अनेक योग साधक आसन, ध्यान और प्राणायाम के बाद ओम शब्द का जाप करते हैं। यह योग साधना के दौरान देह के विकार रहित होने के साथ ही मन की पवित्रता और विचारों की जो शुद्धि प्राप्त होती है उसे आत्मिक स्थिरता प्रदान करता है। ओम अत्यंत सूक्ष्म शब्द है पर जाप करने पर देह के स्वास्थ्य, मन की पवितत्रता और विचारों की शुद्धता कर उनको व्यापक रूप प्रदान कर यह मनुष्य के व्यक्तित्व को बाह्य रूप से तेजस्वी बनाता है।
अथर्ववेद में कहा गया है कि
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त्रयः सुवर्णासिवृत यदायत्रेकाक्षरमभि-संभूय शका शका।
प्रत्योहन्मृत्युमृतेन साकसन्तदंधाना दुरितानी विश्वा।।
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त्रयः सुवर्णासिवृत यदायत्रेकाक्षरमभि-संभूय शका शका।
प्रत्योहन्मृत्युमृतेन साकसन्तदंधाना दुरितानी विश्वा।।
‘‘जब समर्थ तीन स्वर्ण एक अक्षर में तिहरे होकर मिल रहे हें तब वह अमृत के साथ सब अनिष्टों को मिटाकर मृत्यु को दूर करते हैं।’’
अध्यात्म के साथ स्वास्थ्य के विशेषज्ञों का मानना है कि मौन होकर सुखपूर्वक बैठने के बाद अपनी वाणी ने ॐ (ओम)शब्द का जाप करना अत्यंत श्रेयस्कर है क्योंकि इस दौरान मनुष्य का ध्यान शनैः शनै अपनी नियमित दिनचर्या से हटकर निरंकार परमात्मा में लग जाता है। इससे मनुष्य में मनोविज्ञानिक रूप से दृढ़ता आती है। ओम दो नहीं तीन शब्द हैं-अ उ म। इस तरह प्रत्येक शब्द को एक एक करके वाणी से इस तरह उच्चारित करना चाहिए कि पहले शब्द अ और तीसरे शब्द म में जितना समय लगे उससे आधा दूसरे शब्द उ में लगे। इस तरह ध्यान की शक्ति का संचार होता है जो कि आत्मिक रूप से पुष्ट होने में सहायक होती है। यही कारण है कि भारतीय अध्यात्मिक साधक ओम शब्द के उच्चारण को अत्यंत सावधानी और ध्यान से उच्चारित करते हैं। जितनी गहराई से ओम शब्द उच्चारित किया जाता है उतना ही तेज शनैः शनैः मनुष्य की वाणी, विचार, और व्यवहार में उसका तेज प्रकट होता है।
---------संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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