मान तजा तो क्या भया, मन का मता न जाय
संत वचन मानै नहीं, ताको हरि न सुहाय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अपना अहंकार त्यागने से भी क्या लाभ जब मन पर नियंत्रण न हो सके। जो संतों के वचन नहीं सुनता उसे भगवान भक्ति कभी अच्छी नहीं लग सकती।
कंचन तजना सहज है, सहज तिरिया का नेह
मान बढ़ाई ईरषा, दुरलभ तजनी येह
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि सोने का त्याग करना सहज हो सकता है। स्त्री के प्रति जो मन में आकर्षण है उसका त्याग किया जा सकता है। परंतु दूसरों से सम्मान पाने का मोह त्याग करना कठिन है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-अक्सर अनेक गुरु कहते हैं कि अहंकार छोड़ दो। एक नारे की तरह अनेक व्यवसायिक संत दोहराते हैं कि अहंकार छोड़ दो। वास्तव में कई लोग अहंकार छोड़ने का प्रयास भी करते हैं पर मन में जब तक कामनाओं का भाव है तब तक यह प्रयास निरर्थक है। मन में अगर किसी वस्तु की प्राप्ति का भाव पैदा होने पर मनुष्य उसके पीछे भागता तब फिर वही अहंकार का भाव उसमें पैदा होता है। अहंकार छोड़ने का मतलब यह कतई नहीं है कि कामनाओं का दास बना जाये। संसार के पदार्थों के प्रति मोह कभी अहंकार का भाव खत्म नहीं होने देगा। कुछ देर एसा लगता है कि अहंकार का भाव छोड़कर मान-अपमान से परे हुआ जाये पर मन में कामना का भाव इसमें बाधा उत्पन्न कर देता है।
सोना चांदी और अन्य संपत्तियों का त्याग किया जा सकता है, स्त्री के प्रति जो स्वाभाविक भाव है उससे दूर हुआ जा सकता है पर सम्मान पाने का मोह छोड़ पाना तो सिद्ध संतों और योगियों के लिये ही संभव है। हमारे समाज का एक सत्य तो यह है कि लोग साधू और संतों का चोगा केवल भोजन और सम्मान पाने के लिये धारण करत हैं। वही कहते रहते हैं कि अहंकार छोड़ दो पर सबसे अधिक अहंकार उनको ही होता है। अपने प्रवचनों में मैं-मैं रट लगाने वाले यह संत भी माया के वश में इस तरह जकड़े रहते हैं कि उनकी मुक्ति संभव नहीं लगती है। अनेक लोगों ने बड़े-बड़े आश्रम बना लिये हैं। करोड़ों रुपये व्याज पर चला रहे हैं और लोगों से कहते हैं कि माया का त्याग करो। इसके लिये जिस तप की आवश्यकता है वह विरले ही कर पाते हैं और फिर वह आकर अपनी सफलता का ढिंढोरा नहीं पीटते न ही शिष्यों को दीक्षा देने के लिये दौरे करते हैं। भक्त गण उनके पास जाकर उनके दर्शन कर अपने को धन्य समझते हैं।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago