2.मन को प्रिय लगने वाली वस्तु शोक करने से प्राप्त नहीं होती। शोक से तो केवल शरीर का नाश होता है। इसे देखकर शत्रु प्रसन्न होते हैं।
3.जैसे हंस सूखे सरोवर के आसपास मंडराते रह जाते हैं और उसके अंदर प्रविष्ट नहीं होते। वैसे ही जिसके मन में चंचलता का भाव है वह अज्ञानी इंद्रियों के का गुलाम बन कर रह जाता है और उसे अर्थ की प्रािप्त नहीं हेाती।
4.विद्या,तप,संयम और त्याग के अलावा शांति का कोई उपाय नहीं है।
5.भले की बात कहीं जाये तो भी उन्हें अच्छी नहीं लगती। उनकी योग से भी सिद्धि नहीं हो पाती। भेदभाव करने वाले आदमी की विनाश के सिवा और कोई गति नहीं है।
6.जो भेदभाव करते हैं उनके लिये धर्म का आचरण करना संभव नहीं है। उनको न तो सुख मिलता है न ही गौरव। उनको शांति वार्तालाप करना नहीं सुहाता।
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