माया छोड़न सब कहैं, माया छोरि न जाय
छोरन की जो बात करु, बहुत तमाचा खाय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि माया छोड़ने को सब कहते हैं पर छोड़ी किसी से नहीं जाती। जो लोग माया छोड़ने की कहते है वही इसको पाने के लिये तमाम तरह के तमाचे खाने को तैयार रहते हैं।
मन मते माया तजी, यूं कसि निकस बहार
लागि रहि जानी नहीं, भटकी भयो खुवार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते है कि मन में आता है तो लोग माया को छोड़कर घर छोड़कर बाहर निकल जाते हैं पर वह मन में अटकी रहती है और उनका उसे पाने का लोभ और खुमार और बढ़ जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आजकल तो आप चाहे जो संत देख लें वह माया छोड़ने की बात करता है पर अगर आप उनका रहनसहन देखें तो आपको यह दिखने लगेगा कि आपसे अधिक तो माया की पकड़ में तो वही लोग हैं जो ऐसा कह रहे हैं। फाइव स्टार आश्रमों में रहते हैं तमाम तरह की औषधि वगैरह बेचते है।
इस संसार में दो मार्ग हैं एक तो सत्य प्रधान का दूसरा है माया प्रधान। आशय यह है कि एक तो लोग सत्य के रास्ते पर चलते हुए माया से सीमित मात्रा में संबंध रखते हैं दूसरे माया के रास्ते पर चलते हैं पर सत्य से उनका कोई उनका संबंंध नहीं रहता। आप देखिए गरीब मजदूर अपना कमा खा कर सो जाते हैं। अपने जीवन का अनुभव या ज्ञान बांटने के लिए इधर-उधर जाकर कोई फीस नहीं वसूल करते पर माया के भक्त तो सत्य का नकाब पहनकर उपदेश देते फिरते हैं। आलीशान बंगलों में रहते हैं और वातानुकूलित कारों के यात्रा करते हैं। सत्य के यह उपासक इतने मायावी होते हैं कि लक्जरी बसों और हवाईजहाजों में घूमते हैंे और सब देखते हुए भी लोग उनकी भक्ति करते हैं।
माया यानि धन आवश्यक है और उसके लिये आदमी को परिश्रम करना चाहिए क्योंकि उसके बिना कोई काम नहीं चल सकता। समय निकालकर भगवान भक्ति और सत्संग भी करना चाहिए पर ऐसे मायावी लोगों की बातों में नहंी आना चाहिए।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
-
रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
---
हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago