Wednesday, February 10, 2010

पतंजलि योग दर्शन-विषयों से परे रहना है चतुर्थ प्राणायाम (patanjali yoga darshan in hindi)

ब्राह्माभ्यन्तरविषयाक्षेपी चतुर्थ।
हिन्दी में भावार्थ-
बाहर और भीतर के विषयों का त्याग कर देना स्वयं में ही चतुर्थ प्राणायाम है।
तत क्षीयते प्रकाशावरणम्।।

हिन्दी में भावार्थ-इस प्राणायाम से अज्ञान क्षीण होने के साथ ही  ज्ञान का दीप प्रज्जवलित हो जाता है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हम इसे ध्यान का ऐसा चरम स्वरूप मान सकते हैं जो वास्तव में  प्राणायाम के तुल्य है।  सच बात तो यह है कि योगसाधना, मंत्रोच्चार तथा प्रार्थना अपने मन और देह को पवित्र करने के साधन हैं जिससे ध्यान के समय अधिक दुविधा न रहे। अक्सर लोग यह शिकायत करते हैं कि उनका ध्यान नहीं लगता क्योंकि मन में विचार आते जाते हैं।  यही कारण है योगासनों के समय हर आसन के साथ अपने सात चक्रों पर दृष्टि रखने के लिये कहा जाता है ताकि उससे ध्यान के समय सुविधा हो।  यही स्थिति प्राणायाम की भी है।  इनसे मन और बुद्धि के विकार निकाले जाते हैं।  अगर कुछ लोग योगासन और प्राणायाम नहीं करना चाहते तो वह ध्यान के माध्यम से अध्यात्मिक लाभ कर सकते हैं।  इसमें उन्हें आखें बंद कर आसन पर बैठना चाहिये और फिर अपनी दृष्टि भृकुटि के बीच में रखना चाहिये। विचार आते है, आने दें पर अपना प्रयास न छोड़ें। धीरे धीरे आप देखेंगे कि आपका ध्यान लगता जा  रहा है। योगासन, प्राणायाम, मंत्रोच्चार और प्रार्थना केवल आठ प्रकृतियों की शुद्धता के लिये मुख्य लक्ष्य तो ध्यान का चरम शिखर चढ़ना है।  यही ध्यान भारतीय अध्यात्मिक की शक्ति माना जाता है।  योगासन और प्राणायाम तो इस ध्यान के लक्ष्य को प्राप्त करने के साधन मात्र हैं जबकि ज्ञान के लिये ध्यान में सफलता प्राप्त करना आवश्यक है। भीतर और बाहर के विषयों से परे रहने की प्रक्रिया को ही  चतुर्थ प्राणायाम के साथ ध्यान भी कहा जा सकता है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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