2.विद्वान और सत्पुरुषों, स्त्रियों, स्वजातीय बंधुओं और गायों पर अपनी शूरता प्रकट करते हैं वे डण्ठल से पके हुए फलों की भांति नीचे गिरते हैं।
3.बीमारी हुए बिना ही उत्पन्न, कड़वा, सिर में दर्द पैदा करने वाला और पाप से जोड़ने वाला, कठोर, तीखा और गरम है तथा सज्जनों द्वारा ग्रहण करने योग्य नहीं है उस क्रोध को पी जाना ही बेहतर है।
4.अपनी उन्नति चाहने वाले को चाहिए कि वह उत्तम पुरुषों की सेवा करे, समय आने पर मध्यम पुरुषों की भी सेवा करे परंतु अधम पुरुषों की सेवा कदापि न करेnari ।
5दुष्ट पुरुष बल से तो अन्य पुरुष निरंतर उद्योग , बुद्धि के प्रयोग तथा पुरुषार्थ से धन भले ही प्राप कर ले परंतु उत्तम कुल का आचरण और सदाचार प्राप्त करना आसान नहीं है।
---------------------
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप