चलते हैं जो सत्य के पथ पर
अपने घर में भी वह पराये हो जाते
शहर भी जंगल जैसा अहसास कराये जाते
आदर्शों की बात जमाने से वही करते जो
कहने के बाद उसे भुलाये जाते
सभी संत सत्य पथ पर नहीं होते
सभी सत्य मार्ग के पथिक संत नहीं होते
जो चलते नैतिकता के साथ
उनको अनैतिकता के अर्थ पता नहीं होते
जो दुनियां को अपनी मशाल से मार्ग
वही पहले लोगों के घर के चिराग बुझाते
ऊंची ऊंची बातें करते है जो लोग
वही अपना चरित्र गिराये जाते
देव दानव का युद्ध इतिहास नहीं बना
क्योंकि अभी यह जारी है
किस्से बहुत सुनते हैं कि देवता जीते
पर लगता पलड़ा हमेशा दानवों का भारी है
फिर भी नहीं छोड़ते आसरा ईमान का
कितने भी महल खड़े कर ले
ढहता है वह बेईमान का
कोई नहीं गाता किसी के गुण तो क्या
भ्रष्टों के नाम बजते हैं
पर वह अमर नहीं हो जाते
अपने पीछे पीढियों के लिये बुराईयों के झुंड छोड़ जाते
बैचेन जिंदगी गुजारते हैं
उनके पाप ही पीछे से काटते
पर जिन्होने ली है सत्य की राह
वह चैन की बंसी बजाये जाते
भय के अंधेरे को दूर करने के लिये
सत्य के दीप जलाये जाते
.......................
दीपक भारतदीप
अपने घर में भी वह पराये हो जाते
शहर भी जंगल जैसा अहसास कराये जाते
आदर्शों की बात जमाने से वही करते जो
कहने के बाद उसे भुलाये जाते
सभी संत सत्य पथ पर नहीं होते
सभी सत्य मार्ग के पथिक संत नहीं होते
जो चलते नैतिकता के साथ
उनको अनैतिकता के अर्थ पता नहीं होते
जो दुनियां को अपनी मशाल से मार्ग
वही पहले लोगों के घर के चिराग बुझाते
ऊंची ऊंची बातें करते है जो लोग
वही अपना चरित्र गिराये जाते
देव दानव का युद्ध इतिहास नहीं बना
क्योंकि अभी यह जारी है
किस्से बहुत सुनते हैं कि देवता जीते
पर लगता पलड़ा हमेशा दानवों का भारी है
फिर भी नहीं छोड़ते आसरा ईमान का
कितने भी महल खड़े कर ले
ढहता है वह बेईमान का
कोई नहीं गाता किसी के गुण तो क्या
भ्रष्टों के नाम बजते हैं
पर वह अमर नहीं हो जाते
अपने पीछे पीढियों के लिये बुराईयों के झुंड छोड़ जाते
बैचेन जिंदगी गुजारते हैं
उनके पाप ही पीछे से काटते
पर जिन्होने ली है सत्य की राह
वह चैन की बंसी बजाये जाते
भय के अंधेरे को दूर करने के लिये
सत्य के दीप जलाये जाते
.......................
दीपक भारतदीप