Saturday, August 29, 2015

अंतर्जाल पर प्रहारात्मक रूप से अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी अधिक प्रभावी-हिन्दी दिवस पर विशेष लेख(hindi batter than inglish on internet-special hindi article on hindi diwas)

                                   ट्विटर, फेसबुक और ब्लॉग से आठ वषौं के सतत संपर्क से यह अनुभव हुआ है कि भले ही आपकी बात अंग्रेजी में अधिक पढ़ी जाती है पर भारत में समझने के लिये आपका पाठ हिन्दी में होना आवश्यक है।  महत्वपूर्ण बात यह है कि अगर आक्रामक शैली में शब्द लिखने हों तो अंग्रेजी से अधिक हिन्दी ज्यादा बेहतर भाषा है।  कटु  बात कहने के लिये मधुर शब्द का उपयोग भी व्यंजना भाषा में इस तरह किया जा सकता है कि  ंइसका अनुभव एक ऐसे ट्विटर प्रयोक्ता के खाते से संपर्क होने पर हुआ जो अपनी अंग्रेजी भाषा में लिखी गयी बात से प्रसिद्ध हो रहा है।  उसके अंग्रेजी शब्दों के जवाब में अंग्रेजी टिप्पणियां आती हैं पर जितना आक्रामक शब्द अंग्रेजी की अपेक्षा हिन्दी टिप्पणियों के होते हैं।  एक टिप्पणीकर्ता ने तो लिख ही दिया कि अगर अपनी बात ज्यादा प्रभावी बनाना चाहते हो तो हिन्दी में लिखो। वह ट्विटर प्रयोक्ता अंग्रेजी में लिख रहा है पर उसकी आशा के अनुरूप हवा नहीं बन पाती। अगर वह हिन्दी में लिखता तो शायद ज्यादा चर्चित होता। इसलिये हमारी सलाह तो यही है कि जहां तक हो सके अपना हार्दिक प्रभाव बनाने के लिये अधिक से अधिक देवनागरी हिन्दी में लिखे।

140 शब्दों की सीमा से अधिक ट्विटरलौंगर पर लिखना भी दिलचस्प
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इधर ट्विटर ने भी 140 शब्दों से अधिक शब्द लिखने वाले प्रयोक्ताओं  ट्विटलोंगर की सुविधा प्रदान की है। हिन्दी के प्रयोक्ता शायद इसलिये उसका अधिक उपयोग नहीं कर पा रहे क्योंकि उसका प्रचार अधिक नहीं है। हमने जब एक प्रयोक्ता के खाते का भ्रमण किया तब पता लगा कि यह सुविधा मौजूद है। हालांकि हम जैसे ब्लॉग लेखक के लिये यह सुविधा अधिक उपयोगी नहीं है पर जब किसी विशेष विषय पर ट्विटर लिखना हो तो उसका उपयोग कर ही लेते हैं। वैसे ट्विटर पर अधिक लिखना ज्यादा अच्छा नहीं लगता क्योंकि वह लोग लिंक कम ही क्लिक करते हैं।  बहरहाल जो केवल ट्विटर पर अधिक सक्रिय हैं उनके लिये यह लिंक तब अधिक उपयोग हो सकता है जब वह अधिक लिखना चाहते हैं।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर 
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
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Thursday, August 27, 2015

गुजरात में सामूहिक हिंसा की पूर्ण पड़ताल आवश्यक-हिन्दी लेख(Gujrat mein samuhik hinsa ki poorn padtal aawashyak-hindi article)


                                   गुजरात में जिस तरह एकदम सामूहिक हिंसा हुई उससे लगता है कि कुछ लोग इसके लिये तैयार बैठे थे। इस हिंसा के लिये किसी खास समुदाय पर आक्षेप करना ठीक नहीं लगता। अगर प्रचार माध्यमों तथा समाचार पत्रों की बात माने तो वहां तमाम वर्ग के लोग इस हिंसा में शामिल रहे हैं।  गोधरा में रेल यात्रियों की  हत्या के बाद हुई हिंसा में भी सभी धर्मों के लोगों पर हमले हुए थे पर यह अलग बात है कि एक विशेष धर्म के लोगों के शिकार होने की अधिक चर्चा होती रहीं। आमतौर से गुजरात में बारह तेरह वर्ष पूर्व में सांप्रदायिक दंगे होना आम बात थी पर बाद में वह थम गयी।  हमारे विचार से कुछ असामाजिक तत्व वहां अपनी हिंसा और लूटपाट का अपना पुराना सपना पूरा करने के लिये लंबे समय से इंतजार में थे।  इसलिये वहां के जिम्मेदार नेताओं को अपने आंदोलन चलाते समय इसपर ध्यान देना चाहिये।  यहां यह भी बता दें कि एक खास समुदाय के सहारे पूरे देश की चुनावी राजनीति में छा जाने की संभावना नहीं रहती।
                                   वैसे हमारा मानना है कि सरकारी सेवाओं में व्यक्तिगत योग्यता के साथ ही प्रबंध कौशल की कला में शामिल लोगों को ही उच्च पदों पर नियुक्त करना चाहिये।  देश के विकास के लिये यह आवश्यक है कि सरकारी सेवायें व्यवसायिक ढंग से काम करें और बिना योग्यता और कौशल यह संभव नहीं है। हम यह देख रहे हैं कि सरकारी कार्य में निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ रही है पर वहां आरक्षण का नियम काम नहंी करता।  जब हम राजकीय प्रबंध में निजी क्षेत्र की भागीदारी का सिद्धांत मान रहे हैं तो राजकीय सेवाओं में निजी योग्यता और प्रबंध कौशल की आवश्यकता खारिज नहीं किया जा सकता।
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Wednesday, August 19, 2015

पाकिस्तान कड़े संदेश मिलने के भय से घबड़ा रहा है-हिन्दी लेख(kade sandesh milne se bhaybhit pakistan-hindi lekh)


                                   पाकिस्तान इस समय भारत से सुरक्षा सलाहकारों की वार्ता से बचना चाहता है।  उसकी स्थिति कुछ इस तरह है जैसे अदालत का समन मिलने से किसी ऐसे सभ्रांत नागरिक की होती है जिस पर किसी ने मामला दर्ज किया हो-कभी कभी गवाह के रूप में अदालत का समन मिलने से भी लोग घबड़ा जाते हैं।  दोनों के सुरक्षा सलाहकारों की बैठक एक तरह से एक अपराधी की पेशी किसी पुलिस अधिकारी के सामने उपस्थिति जैसी है।  भारत के सुरक्षा सलाहकार पुलिस की भूमिका में है और पाकिस्तान के दूत को उनके सामने अपराधी की तरह हाजिर होना पड़ रहा है।  जिस तरह सामान्य व्यक्ति पुलिस या अदालत से बचने के लिये कोई न कोई उपाय करता है वैसे ही पाकिस्तान सीमा पर हमले करने के साथ ही अन्य उपाय भी कर रहा है।  संभवतः उसे आशंका है कि इस बातचीत में भारत कहीं उसे ऐसे सत्य न कहे जिससे बचा जाना चाहिये।  अभी तक उसे कड़े संदेश हमेशा मीडिया में मिले हैं पर इस बार उसे आशंका है कि भारत में बदलाव होने से  कहीं ऐसा न हो जाये कि औपचारिक या आधिकारिक रूप से कड़ी बात सुनने को  मिले और उसके अनुरूप काम करना पड़े। जब तक नहीं मिले हैं तब तक टालमटोल ही ठीक है।  सभ्रांत आदमी का नियम होता है कि वह बिना चेतावनी के कार्यवाही नहीं करता।  अगर वह ऐसा करता है तो दुनियां उसे ताने देती है। पाकिस्तान को लगता है कि सभ्रांत भारत को चेतावनी देने का अवसर ही नहीं दिया जाये ताकि वह ऐसे कार्यवाही करे तो पूरा विश्व उसकी निंदा करे।
                                   पाकिस्तान भारत से बातचीत कराने में इसलिये कतरा रहा है क्योंकि उसे लगता है कि उफा में समझौते के बाद वह कश्मीर मामला नहीं उठा सकेगा। पाकिस्तान अपना दूत भेजने इसेलिये भी डर रहा है क्योंकि उसे आशंका है कि यह बातचीत बेनतीजा रही तो परिणाम खतरनाक होंगे।      हमारा विचार है कि  यह बातचीत होना चाहिये। भारत पाक सुरक्षा सलाहकारों की बातचीत होने पर इस बार धमकाने और समझाने का सही अवसर मिल सकता है। भारत के सुरक्षासलाहकार डाभोल के समकक्ष पाकिस्तानी सरताज अजीज अत्यंत बौने हैं और यह भय वहां की सेना को सता रहा है। पाकिस्तान को इस बात में भारत बता सकता है कि ब्लूचिस्तान में खुलकर उसके विरुद्ध बिगुल बजाया जा सकता है। इसलिये पाकिस्तान के बातचीत करने के परंपरागत ढंग से हो रहे कुत्सित प्रयासों की परवाह किये बिना भारतीय रणनीतिकारों को अपने प्रयास करना ही चाहिये। मौका मिले तो चार हिस्सों में अनौपचारिक रूप से विभाजित पाकिस्तान पर-पंजाब, सिंध, ब्लूचिस्तार और पख्तूनिस्तान-अपनी मोहर लगा ही देना चाहिये।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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Friday, August 14, 2015

पाकिस्तान के बंटने से ही भारत में शांति होगी-15 अगस्त पर विशेष हिन्दी लेख(dividle pakisan fevoareble for peace in india-special hindi article on 15 AUGUST)


                                   ब्लूचिस्तान टैग से अपने ही फेसबुक और ट्विटर से जाकर कुछ नया देखने की ख्वाहिश हुई।  यह पहला अनुभव था।  कुछ दिन पहले तक हमने कभी किसी शब्द को पूंछ नहीं लगायी थी।  अब जाकर यह अनुभव हुआ कि फेसबुक और ट्विटर से भी अपने ही शब्दों पर पूंछ लगाकर दूसरी जगह जाया जा सकता है। बहरहाल ब्लूचिस्तान शब्द से की गयी खोज से यह पता चला कि वाकई वहां कोई पाकिस्तान प्रेम जैसी कोई बात नहीं है। वहां के लोग आज भी अपना अपना स्वतंत्रता दिवस 11 अगस्त को मनाते हैं।  पाकिस्तान से एकता की बात तो दूर वहां उसके प्रति नफरत का ऐसा भाव है जिससे खत्म नहीं किया जा सकता।  इतना ही नहीं वहां के लोग  भारत से अब भी समर्थन की अपेक्षा रखते हैं। पिछले दिनों पाकिस्तानी मूल के कनाडाई नागरिक लेखक तारिक फतह का साक्षात्कार भारतीय प्रचार माध्यमों में देखा तब यह जानने की इच्छा हुई कि क्या वाकई पाकिस्तान एक संगठित राष्ट्र है या हम ही भ्रम पाले हैं।  फेसबुक में एक जगह तो भारतीय अधिकारी के माध्यम से पाकिस्तान को मिली इस चेतावनी का जिक्र भी था कि अगर फिर मुंबई जैसी घटना हुई तो पाकिस्तान ब्लूचिस्तान से हाथ धो बैठेगा।  फेसबुक पर पाकिस्तान के विरुद्ध जो भावना है उसका भारत लाभ उठा सकता है।
                                   बहरहाल तारिक फतह की बात को सही माने तो भारत 15 अगस्त अपने स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर ब्लूचिस्तान और सिंध को अलग देश में रूप में मान्यता देकर पाकिस्तान को दबाव में डाले। एक बात तय रही कि पाकिस्तान से अब साठ साल से चल रहे संबंधों पर पुनर्विचार कर उसकी वर्तमान रूप में मान्यता समाप्त करना जरूरी है।  पाकिस्तान में पंजाबी लाबी अन्य तीनो प्रांतों के निवासियों के शोषण पर अपना उत्थान तो कर ही रही है वहां के निवासियों के मानवाधिकारों का भी हनन कर रही है।  हम यह तो मानते हैं कि पाकिस्तान को बांटे बगैर हम अपने देश से अशांति के बादल नहीं छांट सकते। तारिक फतह का यही मानना है कि पाकिस्तान को चार टुकड़ों में बांटने से ही विश्व में शांति होगी।
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Saturday, August 8, 2015

समाचार और धर्म के व्यापारियों का आपसी द्वंद्व-हिन्दी चिंत्तन लेख(war between media and religion businessmen-hindi thought article)

                              
                   सभी हिन्दी प्रचार माध्यम जब किसी प्रतिष्ठत भारतीय धर्म के पेशेवर व्यक्तित्व की छवि खराब करने के लिये संयुक्त शब्द आक्रमण करते हैं तब हम जैसे लोगों के लिये मजाक जैसा वातावरण बन जाता है। प्रचार कर्मी अक्सर कहते हैं कि अमुक व्यक्ति धर्म के नाम पर भोले भाले भक्तों का ठग रहा है।  उस समय हमें लोगों के लोभ या लालच से पनपे अज्ञान की बजाय इन प्रचार कर्मियों पर हंसी आती है।  यह सभी जानते हैं कि भारत में प्रचार माध्यम सैद्धांतिक रूप से  ही स्वतंत्र दिखते हैं पर उनका आर्थिक स्वामित्व दो नंबर ही नहीं वरन् काले धंधे वालों के हाथ में ही है।  एक टीवी चैनल ने ही  बकायदा इस व्यवसाय में उन सफेदपोशों के स्वामित्व को उजागर करने के लिये अभियान के रूप में एक कार्यक्रम प्रारंभ किया है जिनके पास काला पैसा है या उनका धंधा काला है।
                                   भारत में धर्म चर्चा एक व्यवसाय की तरह भी है।  व्यवसाय में ऊंची नीच होता ही है।  इसलिये हिन्दी समाचार प्रसारण व्यवसायियों के अनुचरों को  रोज एक खलनायक विज्ञापनों के बीच समाचारा और बहस की सामग्री प्रसारण के लिये मिल ही जाता है। कभी गोल्डन बाबा, कभी राधे मां तो कभी सारथी बाबा। एक बात मजे की होने के साथ ही संदेहास्पद भी लगती है कि सभी निजी हिन्दी समाचार प्रसारण एक साथ ही एक ही खबर पर हमले करते हैं। कभी कभी तो लगता है कि इन समाचार व्यवसायी  इन पेशेवर धार्मिक गुरु आसान शिकार की तरह  लगते हैं जिसका चाहे जब हमला कर देते हैं। भारत के योग तथा ज्ञान साधकों की इन पेशेवर ठेकेदारों से कोई सहानुभूति नहीं है पर प्रचार माध्यम जिस तरह हल्के विषयों को भी गंभीर और देश के लिये महत्वपूर्ण विषयों को हल्का बनाते हैं वह भी उनको हैरानी काी बात लगती है। इन समाचार माध्यमों में अधिकतर ऐसे विद्वान हैं जो  अंग्रेजी शिक्षा के कारण विदेशी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक तथा धािर्मक विचारधाराओं को श्रेष्ठ मानते हैं। इन विदेशी विचाराधाराओं के पोषक बुद्धिजीवी और प्रचारक जब धर्म के ठेकेदारों की कमाई से चिढ़ते हैं तो हंसी आती है। उनकी कुंठा देखते ही बनती है।
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Monday, August 3, 2015

हर हर महादेव-सावन का माह भक्ति की चाह-हिन्दी लेख(har har mahadev-sawan ka mahin bhakti ka nageena-hindi article

                              सावन के माह  में हर सोमवार  शिवलिंग पर जलाभिषेक करने के लिये बड़ी संख्या में भक्त मंदिरामें जाते हैं।  अनेक पाश्चात्य हिन्दी भाषी ही ज्ञानी इसका मजाक बनाते हैं।  जानते हैं क्यों? इन लोगों को लगता है कि इनके प्रचार पर्दे और पत्रों के लिये दर्शक या पाठक कम हो जाते हैं। मूर्ति पूजा या जलाभिषेक का मजाक बनाने वाले भारतीय अध्यात्मिक दर्शन के बारे में नहीं जानते। खाते हिन्दी से हैं पर माता अंग्रेजी को बताते हैं। पैंट पहनने वालों को सभी कुर्ते पायजामे और धोती वाले गंवार नज़र आते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि मनुष्य के मन का खेल केवल भारतीय अध्यात्मिक दर्शन में समझा जाता है। इसे अंग्रेजी भक्त कतई नहीं समझ सकते।ं
                              मूर्तियों में भगवान नहीं होता। शिवलिंग पर चढ़ा जल गंगा नहीं होता, यह भी सभी जानते है। मगर जब मूर्ति के आगे कोई मत्थ ठेकता है तो वह अपने मन का शुद्धिकरण कर रहा होता है। शिवलिंग पर जल चढ़ाते हुए उसे मन में गंगा जैसी पवित्रता बहने की अनूभूति होती है।  यही अनूभूति मन को दृढ़ और पवित्र बनाती है। विश्व में धर्म के नाम पर अनेक विचाराधारायें प्रचलित हैं-यह अलग बात है कि सभी को धर्म कहा जाता है जबकि हमारे यहां इसका आशय केवल आचरण, व्यवहार तथा कर्म से ही लिया जाता है। इन विचाराधाराओं में भारतीय अध्यात्मिक विचाराधारा पर दृढ़ता पूर्वक चलने वाले ही सबसे अधिक बुद्धिमान और परिश्रमी माने जाते हैं-आज पूरा विश्व भारतीय साफ्टवेयर इंजीनियरों का लोहा मानता है जो कि इसका प्रमाण है।
                              इस विषय पर हमने कोई शोध तो नहीं किया योग तथा ज्ञान साधना के अभ्यास से अनेक ऐसी अनुभूतियां हुईं हैं जो अध्यात्मिक विषय पर लिखते हुए हमें आनंद आता है। निरंकार के उपासक होने के बावजूद मंदिरों में जाने पर भी आनंद मिलता है।  मूल बात है मन की जिसे समझने वाले इस बात को जानते हैं कि सांसरिक विषयों में निरंतर सक्रियता के बाद उससे कुछ समय के लिये-ध्यान और पूजा जैसी क्रियाओं से- प्रथक होने पर एक आनंद की अनूभूति होती है। करो तो जानो।
हर हर हर महादेव, जय शिव शंकर
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
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