धर्म एवं हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नोधर्मेहत्तोऽवधीत्
हिंदी में भावार्थ-जो मनुष्य धर्म की हत्या करता है धर्म उसका संपूर्ण नाश कर देता है। जो धर्म की रक्षा करता है धर्म उसकी रक्षा करता है। इसलिये अपने धर्म की रक्षा करना चाहिए तभी हमारी रक्षा हो पाती है।
एक एव सहृद्धर्मो निधनेऽष्यनुयाति यः
शरीरेण समं नाशं सर्वमन्यद्धि गच्छति
हिंदी में भावार्थ-एक मात्र धर्म ही ऐसा मित्र है जो मरने के बाद भी साथ चलता है, वरना इस देह के त्याग करने के बाद यहां कुछ भी नहीं रह जाता।
संक्षिप्त व्याख्या-मनुष्य का धर्म है इस प्रकृति की अपने सामथर्यानुसार सेवा करना, समस्त जीवों पर दया करना तथा अपना सांसरिक कर्म करते हुए भगवान भक्ति एवं सत्संग करना। हमारे अध्यात्म में निरंकार की निष्काम भक्ति की प्रधानता है पर सकाम भक्ति भी स्वीकार्य है पर वह हृदय से की जाना चाहिए। ऐसा लोग करते नहीं है। अधिकतर लोग दिखावे की भक्ति करते हैं और सकाम भक्तों द्वारा थोपे कर्मकांडों की आलोचना कर अपने धर्म पर ही आक्षेप करते हैं। देख जाये तो लोग अपने धर्म से परे हो गये हैं और इसलिये पूरे विश्व में अशांति और प्राकृतिक प्रकोप का बोलबाला है। हमारे धर्म के अनुसार विश्व के सभी जीवन समान है पर अब मानव की प्रधानता वाली विचारों की स्थापना कर यह साबित किया जा रहा है कि यह प्रथ्वी उनके लिये हैं। वन सपंदा और पशु संपदा का दोहन निर्ममता से किया गया है। धर्म से परे होगये तो अब वह रक्षा करने में भी समर्थ नहीं है।
ऐसे में अपने धर्म के मूल तत्वों को अपने हृदय में धारण कर उसके अनुसार ही जीवन व्यतीत करना ही श्रेयस्कर है।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
-
रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
---
हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago