Monday, September 21, 2009

मनुस्मृति-जल में गंदगी बहाना अनुचित (manu smriti-pani aur gandgi)

नाप्सु मूत्रं पुरीषं वाष्ठीवनं वा समुत्सृजेत्।
अमेध्यमलिप्तमन्यद्वा लोहतं वा विषाणि वा।
हिंदी में भावार्थ-
जल में मल मूत्र, कूड़ा, रक्त तथा विष आदि नहीं बहाना चाहिये। इससे पानी विषाक्त हो जाता है और पर्यावरण पर इसका बुरा प्रभाव दिखाई देता है। इससे मनुष्य तथा अन्य जीवों को स्वास्थ्य भी खराब होता है।
अधस्तान्नोपदध्याच्च न चैनमभिलंघयेत।
न चैनं पादतः कुर्यान्न प्राणबाधामाचरेत्।।
हिंदी में भावार्थ-
आग को किसी तरह के सामान के नीचे नहीं रखना चाहिये। आग को कभी लांघें नहीं। अपने पैरों को कभी आग पर नहीं रखना चहिये और न ही कभी ऐसा काम करें जिससे किसी जीव का वध हो।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हमारी पवित्र नदिया गंगा और यमुना की क्या स्थिति है इसे देखकर कौन कहेगा कि हमारे देश के लोग धर्मभीरु हैं? कहने को कवि, लेखक, संत और कथित अध्यात्मिक नेता दावा करते हैं कि हमारे देश की संस्कृति और सस्कारों की रक्षा होना चाहिए या हम विश्व क अध्यात्मिक गुरु हैं। मगर जब हम अपने देश की नदियों और तालाबों को देखते हैं तो पाते हैं कि यहां केवल नारे लगते हैं पर सच में तो लोग आंखें बंद कर जीने के आदी हो गये हैं। गंगा और यमुना नदियों में आम हो या खास सभी लोग गंदगी बहाते हैं। अधजले शवों को फैंक देते हैं। पंचतत्वों से बने इस शरीर को लेकर जितना अहंकार हमारे देश में हैं अन्यत्र कहीं नहीं है। आदमी पैदा हो या मरे उसके देह को लेकर नाटक बाजी होती है। अब तो अनेक शहरों में बिजली से मुर्दा जलाने की व्यवस्था है मगर वहां अभी भी मृत देह को लकड़ियों से इसलिये जलाया जाता है क्योंकि मृतक के संबंधियों को लगता है कि समाज क लोग कहेंगे कि पैसे बचा रहे हैं। अस्थियां गंगा में विसर्जित की जाती हैं। यह देहाभिमान हैं जिससे बचने की सलाह हमारा अध्यात्मिक ज्ञान देता है पर हिन्दू के नाम पर अपना अहंकार रखने वाले लोग कर्मकांडों के निर्वाह में अपना गौरव मानते हैं उसके नाम पर पर्यावरण को विषाक्त कर देते हैं। बनारस में गंगा की जो स्थिति है उसे सभी जानते हैं और इसे विषाक्त करने वाले हम लोग ही है यह भी सच है। गंगा मैली हो गयी पर की किसने। तमाम तरह के आरोप लगाये जाते हैं पर उसे साफ रहने की पहल कोई नहीं करता।
पर्यावरण प्रदूषण से मनुष्य स्वभाव पर बुरा प्रभाव करता है जिससे उसकी मानसिकता विकृत होती है। आज हम अपने देश में जो आर्थिक और सामाजिक तनाव देख रहे हैं वह केवल इसी पर्यावरण से उपजी खराब मानसिकता का परिणाम है। इसलिये अब भी समय है कि चेत जायें और जितना हो सके अपने जल स्त्रोंतों को साफ रखने का प्रयास करें। कम से कम इतना तो हम कर ही सकते हैं कि हम स्वयं गंदा न करें बाकी जो करते हैं वह जाने। अपने आपको तो यह संतोष होना चाहिए कि हम गंदा नहीं कर रहे। जल गंदा करना पाप है और इसका अपराध नरक में जाकर भोगना पड़ता है।
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