पतंजलि योग साहित्य में कहा गया है कि
---------------
तपः स्वाध्यायेश्वरप्रणिधानानि क्रियायोगः।
समाधि भावनार्थ क्लेशतनूकरणार्थश्च।
हिन्दी में भावार्थ-तप, स्वाध्याय व ईश्वर की शरण लेना तीनों क्रिया योग हैं। इससे समाधि की सिद्धि होने पर क्लेश क्षीण हो जाते हैं।
लेखकीय व्याख्या-‘योग साधना के व्यापक संदर्भ हैं। आसन, प्राणायम तथा ध्यान से जहां देह, मन व विचारों के विकार नष्ट होते हैं वहीं तप स्वध्याय तथा परमात्मा के स्मरण से ज्ञान के साथ ही जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण बनता है। मुख व मन में परमात्मा के नाम का स्मरण, ज्ञानार्जन के लिये ग्रंथों अध्ययन तथा चिंत्तन करना भी क्रिया योग हैं जिससे मनुष्य के अध्यात्मिक तत्व का विकास होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि हम अपने जीवन की हर क्रिया को योग दृष्टि से देखें तथा यह विचार करते रहें कि हमारे किस कर्म से कैसा परिणाम मिलेगा। इस तरह हम सदैव योगवृत्ति में स्थित रहते हुए जीवन का आनंद उठा सकते हैं।
हमारे यहां गुरु शिष्य पंरपरा का इस तरह प्रचार किया जाता है जैसे कि कोई मनुष्य ही इस पद पर हो सकता है जबकि हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार कोई ग्रंथ, प्रतिमा अथवा पक्षी भी गुरु हो सकता है। याद कीजिये महर्षि बाल्मीकि को एक क्रोंच पक्षी की मृत्यु से ऐसी प्रेरणा मिली कि उन्होंने महान ग्रंथ रामायण की रचना कर डाली। महाकवि तुलसीदास की पत्नी के वियोग से ऐसी प्रेरणा मिली कि उन्होंने रामचरित मानस जैसी अनुपम रचना भारतीय समाज को दी। अतः अगर योग्य दैहिक गुरु न मिले तो अध्यात्मिक ग्रंथों को ही अपना गुरु मानना चाहिये। कहा जाता है कि ‘करत करत अभ्यास मूरख भये सुजान’, अतः स्वाध्याय के साथ ही परमात्मा नाम का आसरा लेना चाहिये।
---------------
हमारे यहां गुरु शिष्य पंरपरा का इस तरह प्रचार किया जाता है जैसे कि कोई मनुष्य ही इस पद पर हो सकता है जबकि हमारे अध्यात्मिक दर्शन के अनुसार कोई ग्रंथ, प्रतिमा अथवा पक्षी भी गुरु हो सकता है। याद कीजिये महर्षि बाल्मीकि को एक क्रोंच पक्षी की मृत्यु से ऐसी प्रेरणा मिली कि उन्होंने महान ग्रंथ रामायण की रचना कर डाली। महाकवि तुलसीदास की पत्नी के वियोग से ऐसी प्रेरणा मिली कि उन्होंने रामचरित मानस जैसी अनुपम रचना भारतीय समाज को दी। अतः अगर योग्य दैहिक गुरु न मिले तो अध्यात्मिक ग्रंथों को ही अपना गुरु मानना चाहिये। कहा जाता है कि ‘करत करत अभ्यास मूरख भये सुजान’, अतः स्वाध्याय के साथ ही परमात्मा नाम का आसरा लेना चाहिये।
---------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका