Wednesday, April 30, 2008

रहीम के दोहे:दु:ख और सुख हैं चौसर की गोट की तरह

जब लगि जीवन जगत में, सुख दुख मिलन अगोट
रहिमन फूटे ज्यों, परत दुहुंन सिर चोट


कविवर रहीम कहते हैं कि इस जगत में जीवन है तब तक सुख और दुख और मिलते रहेंगे। यह ऐसे ही जैसे चैसर की गोट को गोट मारने से दोनो के सिर पर चोट लगती है।

वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-इस संसार में दुःख और सुख दोनों ही रहते हैं। जिस तरह किसी भी खेल में दो खिलाड़ी होते हैं तभी खेल हो पाता है उसी तरह ही जीवन की अनुभूति भी तभी हो पाती है जब दुख और सुख आते हैं। सूरज डूबता है तभी आकाश में समस्त तारे और चंद्रमा दिखाई पड़ता ह। अगर यह प्रकृति द्वारा निर्मित चक्र घूमे नहीं तो हमें दिल औ रात का पता ही न चले-ऐसे मे क्या यह एकरसता हमें तकलीफ नहीं देगी?

गर्मी के दिनों में भी जब हम कूलर में बैठे रहते हैं तो घबड़ाहट होने लगती है और उस समय भी थोड़ी घूप का केवल हमें राहत देता है। गर्मी में धूप कितनी कठोर और दुखःदायी लगती है पर कूलर में भी बहुत देर तक बैठना दुखदायी हो जाता है। इस तरह यह दुख सुख का चक्र है। यह देखा जाये तो यह वास्तव में भ्रम भी है। दुख और सुख मन के भाव हैं। इसलिये अगर हमारे साथ जो परेशानियां हैं उनको सहज भाव से लें तो हमें दुख की अनुभूति नहीं होगी। अगर हम इस चक्र को लेकर प्रसन्न या दुखी होंगे तो उससे मस्तिष्क में तनाव उत्पन्न होता है जो कि वास्तव में कई रोगों का जनक है और उसका इलाज किसी के पास नहीं है।

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