१.इन्द्रियों के विषयों-रूप, रस, गंध, शब्द और स्पर्श-में विद्वानों को कभी आसक्त नहीं होना चाहिए. विषयों की आसक्ति से बचने के लिए मन को संयमित करना चाहिए।
२. विद्वानों को अपनी जीविका चलाने के लिए संसार के अन्य व्यक्तियों के समान छल-कपट नहीं करना चाहिए, अपितु सब प्रकार के पवित्र और शुद्ध जीविकोपार्जन के साधन ही अपनाना चाहिए।
३.संतोष और संयम से ही स्थाई सुख की प्राप्ति होती है, अत: विद्वान को सदैव संतोष और संयम धारण करना चाइये. उसे यह याद रखना चाहिए की संतोष ही सुखों का मूल है और असंत्सोह दु:खों का कारण होता है।
४.उंछ और शिल को ऋत कहते हैं, जो कुछ बिना याचना के मिल जाए उसे अमृत कहते हैं, भिक्षा मांगना मृत है और कृषि करना प्रमृत है।
*खेती करने से अनेक सूक्ष्म जीवों की हत्या अनजाने में हत्या होती है अत उसे 'प्रमृत' कहते हैं।
*कृषक द्वारा खेत में बोए अन्न को काटकर ले जाने के पश्चात उसके द्वारा छूट गए या मार्ग में गिर गए दानों को उंगली से चुनने को उंछ और धान्य यानी बालियों को चुनने को शिल कहते हैं।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago