Sunday, April 4, 2010

कौटिल्य का अर्थशास्त्र-शत्रुओं पर दंड का प्रयोग अवश्य करें (kautilya darshan-shatru aur dand)

उत्साहदेशकालेस्तु संयुक्तः सुसहायवान्।
युधिष्ठिर इवात्यर्थ दण्डेनास्तन्रयेदरन्।।
हिन्दी में भावार्थ-
अपने अंदर उत्साह का निर्माण तथा देश काल का ज्ञान प्राप्त करते हुए बलवान युधिष्ठर के समान शत्रु को परास्त करें।
आत्मनः शक्तिमुदीक्ष्य दण्दमभ्यधिकं नयेत्।
एकाकी सत्वसंपन्नो रामः क्षत्रं पुराऽवधीत्।।
हिन्दी में भावार्थ-
अपनी शक्ति को देखते हुए दण्ड का प्रयोग अवश्य करना चाहिये। शक्ति संपन्न होने पर ही अकेले परशुराम ने इक्कीस बार क्षत्रियों को नष्ट किया था।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-हर सामान्य मनुष्य शांति से जीवन बिताना चाहता है पर मनुष्यों मे भी कुछ तामस प्रवृत्ति के होते हैं जिनका दूसरे व्यक्ति को परेशान करने में मजा आता है। ऐसे दुष्टों का सामना जीवन में करना ही पड़ता है। आजकल पूरे विश्व में आतंकवाद और अन्य अपराध इसलिये फैल रहे हैं क्योंकि राजकाज से जुड़े व्यक्तियों में उनका सामना करने की इच्छा शक्ति नहीं है। अधिकतर देशों में आधुनिक लोकतंत्र है। राजशाही में कहा जाता था कि ‘यथा राजा तथा प्रजा’ पर आधुनिक लोकतंत्र में तो यह कहा जाना चाहिये कि ‘जैसी प्रजा वैसा ही राज्य’। एक तरफ हम कहते हैं कि भारत में अंग्रेजों की शिक्षा ऐसी रही जिससे यहां का आदमी कायर हो गया तो दूसरी तरफ हम देखते हैं कि इसी शिक्षा पद्धति को अपनाने वाले ब्रिटेन और अमेरिका में भी कोई अधिक अच्छी स्थिति नहीं है। सच बात तो यह है कि इस विश्व में खतरा दुष्टों की हिंसा से अधिक सज्जनों की कायरता के कारण बढ़ा है। लोग अपनी रक्षा के लिये न तो प्रारंभिक सतर्कता बरतते हैं और न ही चालाकी कर पाते हैं। दूसरी बात यह है कि दुष्टों के कमजोर होने के बावजूद उनके विरुद्ध कदम उठाने से घबड़ाते हैं।
यदि सभी यह चाहते हैं कि विश्व में शान्ति  का वर्चस्व रहे और लोग आजादी से सांस ले सकें तो दुष्टों का संहार तो करना ही पड़ेगा। उनके विरुद्ध कठोर कार्यवाही करना जरूरी है ताकि सज्जन लोगों में आत्म विश्वास आये। जो लोग राजकाज से जुड़े हैं उनको यह बात समझ लेना चाहिये कि दुष्ट व्यक्तियों या राष्ट्रों के विरुद्ध दंडात्मक कार्यवाही के बिना अपनी राज्य की प्रजा को सुखी नहीं रखा जा सकता और न ही उसका विश्वास मिल सकता है।
संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
http://anant-shabd.blogspot.com
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