प्रासादशिखरस्थोऽपि काकः किं गरुडायते।।
हिन्दी में भावार्थ-ऊंचे स्थान पर बैठने से कोई ऊंचा या महान नहीं हो जाता। गुणवान ही ऊंचा माना जाता। महल की अटारी पर बैठने से कौआ, गरुड़ नहीं कहलाने लगता है।
पर-प्रौक्तगुणो वस्तु निर्गुणोऽपि गुणी भवेत्।
इन्द्रोऽपि लघुतां याति स्वयं प्रख्यापितैर्गृणैः।।
हिन्दी में भावार्थ-जिसके गुणों की प्रशंसा अन्य लोग भी करें उसका ज्ञान भले ही अल्प हो पर फिर भी उसे गुणवान माना जायेगा। इसके विपरीत जिसे ज्ञान में पूर्णता प्राप्त हो वह अगर स्वयं उनका बखान करे तो गुणहीन माना जायेगा भले ही वह साक्षात देवराज इंद्र ही क्यों न हो।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-आजकल की भौतिक दुनियां में संचार साधन अत्यंत प्रभावशाली हो गये हैं। अखबार, टीवी चैनल, मोबाईल, कंप्यूटर तथा अन्य साधनों से अधिकतर लोग जुड़े हुए हैं। अपनी व्यवसायिक बाध्यताओं के चलते प्रचार प्रबंधकों ने फिल्म, राजनीति, टीवी चैनल, साहित्य, कला, तथा पत्रकारिता में अनेक मिथक स्थापित कर दिये हैं। दुनियां भर में ऐसे मिथक एक दो हजार से अधिक नहीं होंगे। अपने ही देश में भी सौ दो सौ ऐसे अधिक प्रभावशाली नाम और चेहरे नहीं होंगे जो प्रचार माध्यमों में छाये हुए हैं। प्रचार माध्यम उनके चेहरे, नाम और बयान प्रस्तुत कर लोगों को व्यस्त रखते हैं। यह देखकर आजकल के अनेक युवा भ्रमित हो जाते हैं। उनको लगता है कि यह काल्पनिक चरित्र ही जीवन का सत्य है। राजनीति, अर्थतंत्र, प्रशासन, साहित्य, पत्रकारिता, फिल्म तथा कला के शिखर पर स्थापित लोग त्रिगुणमयी माया के गुणों से परे हैं-यह भ्रम पता नहीं कैसे लोगों में हो जाता है। जबकि सच यह है कि यह शिखर ही अपने आप में मायावी हैं इसलिये इन पर बैठे लोगों के सात्विक होने की आशा ही करना बेकार है। बाजार और प्रचार केवल उनके चेहरे, नाम और बयान भुनाने का प्रयास करते हैं। फिल्मों के कल्पित नायक सदी के महानायक और गायक सुर सम्राट कहलाते हैं पर सच यह है कि उनका कोई सामाजिक योगदान नहीं होता।
महान वही है जिसका कृत्य समाज में चेतना, आत्मविश्वास तथा दृढ़ता लाने का काम करता है। इतना ही नहीं उनका बदलाव लंबे समय तक रहता है। कहने का तात्पर्य यही है कि आर्थिक, सामाजिक तथा सामाजिक शिखरों पर विराजमान लोगों को महान समझने की गलती नहीं करना चाहिये। वह भी आम आदमी की तरह होते हैं। जिस तरह आम आदमी अपने परिवार की चिंता करता है वैसे ही वह करते हैं। महान आदमी वह है जो पूरी तरह से समाज की चिंता करते हुए उसे हित के लिये काम करता है।
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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