निन्दक एकहू मति मिलै, पापी मिलै हजार
इक निन्दक के सीस पर, लाख पाप का भार
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि पापी तो हजार मिलते हैं पर पर निंदा करने वाला महापापी नहीं मिलना चाहिये। एक निंदक के सिर पर लाखों पाप का भार रहता है।
निन्दक नेरे राखिये, आंगन कुटी छवाय
बिन पानी साबुन बिना, निरमल करै सुभाय
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अपनी निंदा करने वाले व्यक्ति को अपने पास मकान बनवाकर रख लो क्योंकि वह बिना पानी और साबुन के ही आपके मन को निर्मल करता है।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-एक तरह तो कबीरदास जी कहते हैं कि एक भी निंदक नहीं मिलना चाहिऐ दूसरी तरफ कहते हैं कि अपने निंदक को अपने पास ही रखना चाहिए। इसमें सतही तौर पर विरोधाभास लगता है पर गहन अर्थों में दोनों ही गूढ़ रहस्य भरे हुए हैं। हमें स्वयं किसी की निंदा नहीं करना चाहिए। निंदा का अर्थ यह है कि हम दूसरें में दोष देख रहे हैं और जब उनकी कहीं अन्यत्र चर्चा करते हैं तो वह दोष हमारे अंदर भी घर करने लगते हैं। हो सकता है कि हमारी निंदा सुनकर दूसरा व्यक्ति अपने दोष से किनारा कर ले और वह पतित्र हो जाये पर हमारे अंदर उसकी निंदा से जो दोष आया है उसका निराकरण नहीं हो सकता।
दूसरा कोई हमारी निंदा करे तो उससे विचलित नहीं होना चाहिए बल्कि आत्म चिंतन करना चाहिए कि क्या वह दोष वाकई हमारे अंदर है तो फिर उसका निराकरण करना चाहिए। नहीं तो इस बहाने अपना आत्म मंथन तो हो ही जाता है जो कि जीवन के विकास के लिये एक अनिवार्य प्रक्रिया मानी जाती है।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago