Saturday, July 30, 2016

राज्य प्रबंध की भूमिका समाज के सुचारु संचालन तक ही होना चाहिये-हिन्दी लेख (Stete And socity-HindiEditorial)


                              शराब, सिगरेट तथा मादकद्रव्य पदार्थों का सेवन देह के लिये खतरनाक है पर हमारा मानना है कि राज्य को इन पर पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास नहीं करना चाहिये।  इनके प्रयोग से मनुष्य शारीरिक, मानसिक तथा वैचारिक रूप से कमजोर होता है। उससे भी ज्यादा कड़ी बात तो यह है कि इनके नियमित सेवन करने वाले व्यक्तियों से समय पड़ने पर दृढ़ सहयोग की आशा भी करना मूर्खता है चाहे वह कितने भी निजी क्यों न हों?
इसके बावजूद स्वतंत्र लेखक के रूप में हमारी मान्यता है कि राज्य प्रबंध को समाज सुधार के काम में ज्यादा हस्तक्षेप करने की बजाय उनकी ठेकेदारी करने वालो लोगों पर ही छोड़ना चाहिये। अपने जिस कृत्य से व्यक्ति अगर किसी की हानि नहीं कर रहा हो उसके विरुद्ध केवल इसलिये कार्यवाही नहीं की जा सकती कि वह अपना स्वास्थ्य बिगाड़ रहा है।  शराब पर प्रतिबंध लगाना आसान है पर प्रश्न यह है कि क्या उसका राजकीय औचित्य कैसे प्रमाणित किया जायेगा-खासतौर से जब शराब से अधिक खतरनाक तंबाकू पाउच, अफीम तथा कोकीन अन्य खतरनाक मादकपदार्थ अवैध रूप से बिना राजकीय अनुमति के बिक रहे हैं और जिनका शिकार भारत का युवा वर्ग बुरी तरह से हो रहा है।  हालांकि साधारण तंबाकू चुने से मिलाकर खाना स्वास्थ्य के लिये ठीक नहीं है पर इनका सेवन पारंपरिक रूप से होता है और इससे इतने लोग कैंसर का शिकार नहीं होते जितना पैक पाउच से होते हैं। यह पैक पाउच सामान्य तंबाकू से कई गुना खतरनाक है पर जब प्रतिबंध की बात आती है तो परंपरागत तंबाकू सेवन पर भी लागू करने की बात की जाती है ।
बहरहाल हम किसी प्रतिबंध का विरोध या समर्थन नहीं कर रहे। हम तो यहां तक कहते हैं कि व्यसन मनुष्य को अकर्मण्य तथा कायर बनाते हैं। हमारा प्रश्न तो यह है कि राज्य प्रबंध को समाज के सुचारु संचालन तक अपनी भूमिका रखना चाहिये।  सुधार करने का जिम्मा समाज पर ही छोड़ना चाहिये। समय समय पर हमारे देश में समाज सुधारक अपना काम करते रहें हैं।
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Sunday, July 17, 2016

पति पत्नी के प्रसन्न रहने पर ही परिवार का सुखी होना संभव-मनुस्मृति के आधार पर चिंत्तन लेख (Wifr Hasband And Family-A Hindi Article based on Manu Smruti)

                        एक वर्ष पूर्व की रचभावनाओं के सौदागर अनेक स्वांग रचकर आम मनुष्य का हृदय विभिन्न रसों में बहलाकर अपनी हित साधते हैं क्योंकि वह जानते हैं मनुष्य का मन बुद्धु है। मनुष्य का मन अगर बुद्धू न होता तो भावनाओं के खिलाड़ी फिल्म, क्रिकेट, साहित्य, चित्रकारी तथा नाटक के खेलों में रस भरकर कमाई नहीं कर पाते। मनुष्य का मन जहां  बुद्धू हो जाता है वहीं से भावनाओं के व्यापारियों का ऐसा खेल प्रारंभ होता है जिसे सामान्य भाषा में मनोरंजन कहा जाता है।
मनुस्मृति न पढ़ना है मत पढ़ो। कार्ल मार्क्स की पूंजी किताब व लेनिन के भाषण पढ़कर कौन तीर मार लिये? मनुस्मृति पढ़ने से फिर भी धर्म व अधर्म की पहचान हो जाती है जबकि विदेशी विचार तो केवल स्वर्ग का मार्ग दिखाते हैं। कार्लमार्क्स के शिष्य शायद मनुस्मृति का विरोध इसलिये करते हैं क्योंकि अज्ञान फैलाकर स्वयं नायक बनना है। मनुस्मृति के विरोधी अंधेरे में प्रकाश के लिये राज्य की तरफ ताकते हैं जबकि मनुस्मृति स्वयं दिया जलाने की प्रेरणा देती हैं।
मनुस्मृति में कहा गया है कि
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संतुष्टोभार्वथा भर्त्ता भत्री भायी तथैव च।
यस्मिनैव कुले नित्यं कल्याणं तत्र वैधुवम्।।
हिन्दी में भावार्थ-जिस परिवार में पति पत्नी एक दूसरे से प्रसन्न रहते हैं वह सदैव प्रसन्न तथा सुखी रहता है।
मनुस्मृति के विरोधी तो यह मानते हैं कि सभी पुरुष तो परमात्मा से हमेशा प्रसन्न रहने का वरदान लेकर पैदा हुए हैं जबकि महिलायें कष्ट पाने के लिये शापित हैं।  जबकि सच यह है कि हमारा अध्यात्मिक दर्शन मानता है कि स्त्री पुरुष अगर दोनों ही प्रसन्न रहेंगे तभी परिवार व समाज में शांति से रह सकता है। 

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