शब्द बराबर धन नहीं, जो कोय जानै बोल
हीरा तो दामों मिलै, सब्दहिं मोल न तोल
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि अगर कोई अपनी वाणी से शब्द बोलना जानता हो तो वास्तव में उचित शब्द के बराबर कोई धन नहीं है। हीरा तो फिर भी पैसा खर्च करने पर मिल जाता है पर दूसरे को प्रभावित करने वाले शब्द हर कोई नहीं बोल पाता।
वर्तमान संदर्भ में व्याख्या-आज के भौतिक युग में लोगों के संवेदनशीलता कम होती जा रही है। किसी से प्रेमपूर्वक बोलना चमचागिरी कहा जाता है। सच तो यह है कि लोग उसी से प्रेम से बोलते हैं जिससे कोई काम निकलता है या किसी से डरते हैं। अपने से छोटे या निम्न व्यक्ति के साथ तो हर कोई शुष्क और कठोर व्यवहार करता है। इसका एक पक्ष यह भी है कि अगर किसी से प्रेमपूर्वक बात की जाये तो वह सामने वाले को कमजोर और डरपोक समझने लगता है। कुछ लोग तो ऐसे भी है जो प्रेम ओर मित्रता से बात करने पर मखौल उड़ाने लगते हैं। इसके बावजूद विचलित होने की आवश्यकता नहीं है। हमें अपना व्यवहार साफ रखना चाहिए। जितना हो सके सुंदर और मधुर वाणी में बोलना चाहिए।
एक सच यह भी है कि मधुर और प्रेमपूर्ण वाणी भी तभी बोली जा सकती है जब अपना मन साफ हो। अगर मन में कुविचार रखकर किसी से मधुर वाणी में बोलेंगे तो उसका कोई प्रभाव नहीं होता। किसी से डरकर भी जब उससे मधुर शब्द बोलते हैं तो वह समझ जाता है। कई लोग तो मधुर शब्द बोलकर ठगते हैं और यह सब लोग समझ जाते हैं। अतः मन में स्वच्छता रखकर हम किसी से बात करेंगे तो हमारी वाणी से सुंदर और मधुर शब्द जरूर निकलेगें और उसका प्रभाव भी होगा।
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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6 years ago