कुछ लोग ऐसे होते हैं कि दूसरों के दोषों का बयान करके खुश होते हैं। कुछ ऐसे भी होते हैं जो दूसरों का अपमान करके प्रसन्नता की अनुभूति करते हैं। ऐसे अज्ञानियों का समर्थन करना या उनसे व्यवहार रखना अपने लिये संकट को दावत देना है। आज समाज में तो स्थिति यह है कि लोग दूसरे का अपमान कर यह दिखाते हैं कि वह कितने शक्तिशाली हैं। उसी तरह निर्धन, मज़दूर तथा असहाय आदमी की मजाक उड़ाकर कुछ लोग अपनी शक्ति की पहचान कराते हैं। वह यही नहीं जानते कि गरीब की हाय कितनी ताकतवर होती है।
इस विषय पर मनु महाराज अपनी स्मृति में कहते हैं कि
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सुखं द्वावमतः शेते सुखं च प्रतिबुध्यते।
सुखं चरति लोकेऽस्मिनन्मन्ता विनश्तिं।
"अन्य व्यक्तियों द्वारा अपमान किये जाने पर उनको माफ करने वाला मनुष्य सुखी की नींद लेनें के साथ संसार में सहजता से विचरता है परंतु दूसरों का अपमान करने वाला मनुष्य स्वयं ही नष्ट होता है।"
सच तो यह है कि कुछ लोग अक्षम होने के साथ ही अहंकारी भी होते हैं। उनको पद, प्रतिष्ठा और पैसा विरासत में मिल जाता है। ऐसे लोग गरीब और मज़दूर का दर्द नहीं समझते। उन्होंने कभी परिश्रम किया नहीं होता इसलिये परिश्रमी लोगों को हेय समझकर उनका अपमान करते हैं। अंततः कहीं न कहीं वह अपने आपको ही मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर करते हैं और फिर समय आने से पहले ही तकलीफ भी झेलते हैं। इस तरह के पाप और उसके दंड से बचने का केवल यही उपाय है कि दूसरों के साथ मधुर व्यवहार करें। अपनी वाणी से दूसरों को प्रसन्न रखते अपने लिये दुआओं का भंडार जुटाते रहें। दूसरों को अपमानित कर या कटुवाणी बोलकर अपने लिये पाप ही जुटाया जा सकता है पर मीठी वाणी बोलकर सारे संसार का दिल जीतने के साथ ही अपने आपको हमेशा प्रसन्न रखने का लाभ प्राप्त होता है।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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