साबुन बिचारा क्या के, गांठे राखे मोय
जल सो अरसां नहिं, क्यों कर ऊजल होय
संत कबीर दास कहते हैं कि साबुन क्या करे बेचारा, जब उसको गाँठ अपने हाथ में बाँध रखा है. जल के स्पर्श करता ही नहीं फिर कपडा कैसे उज्जवल हो सकता है.
भाव-ज्ञान की बात तो कंठस्थ कर लेते हैं पर जब समय आता है तो सब भूल जाता है इसमें ज्ञान का कोई दोष नहीं हैं.
भौ सागर की त्रास तेक गुरु की पकडो बाँहि
गुरु बिन कौन उबारसी, भी जल धारा माहिं
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार सागर के दुखों से बचने के लिए गुरु का हाथ पकडो. गुरु के बिना इस भाव सागर से मुक्ति नहीं हो सकती.
आनंद उठाने का सबसे अच्छी तरीका यह है कि आप एकांत में जाकर ध्यान
लगायें-चिंत्तन (Anand Uthane ka tareeka-Chinttan)
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रोकड़ संकट बढ़ाओ ताकि मुद्रा का सम्मान भी बढ़ सके।
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हम वृंदावन में अनेक संत देखते हैं जो भल...
6 years ago