साबुन बिचारा क्या के, गांठे राखे मोय
जल सो अरसां नहिं, क्यों कर ऊजल होय
संत कबीर दास कहते हैं कि साबुन क्या करे बेचारा, जब उसको गाँठ अपने हाथ में बाँध रखा है. जल के स्पर्श करता ही नहीं फिर कपडा कैसे उज्जवल हो सकता है.
भाव-ज्ञान की बात तो कंठस्थ कर लेते हैं पर जब समय आता है तो सब भूल जाता है इसमें ज्ञान का कोई दोष नहीं हैं.
भौ सागर की त्रास तेक गुरु की पकडो बाँहि
गुरु बिन कौन उबारसी, भी जल धारा माहिं
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि इस संसार सागर के दुखों से बचने के लिए गुरु का हाथ पकडो. गुरु के बिना इस भाव सागर से मुक्ति नहीं हो सकती.
समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता है-पतंजलि योग सूत्र
(samadhi chenge life stile)Patanjali yog)
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*समाधि से जीवन चक्र स्वतः ही साधक के अनुकूल होता
है।-------------------योगश्चित्तवृत्तिनिरोशःहिन्दी में भावार्थ -चित्त की
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3 years ago
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