एकहि गुरु के नाम बिनु, धिक दाढ़ी धिक मूंछ
संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि परमात्मा ने बैल को रचते हुए ही पुरुष की रचना कर डाली बस उसने सींग व पूंछ न लगाने की गलती की। सद्गुरु के ज्ञान के बिना उसकी दाढ़ी मूंछ को धिक्कार है।
संक्षिप्त व्याख्या-यहां कबीरदास जी पुरुष के अहंकार को चुनौती देते हुए कहते हैं कि वह सोचता है कि उसका परिवार उसकी शक्ति पर ही चल रहा है और वह इसलिये हमेशा केवल अपने व्यवसाय और नौकरी में जुटा रहकर भक्ति भाव से परे रहने की गलती करते हुए अपना पूरा जीवन व्यर्थ ही नष्ट कर देता है।
हे मतिहीनी माछीरी, राखि न सकी शरीर
सो सरवर सेवा नहीं, जाल काल नहिं कीर
संत शिरोमणि कबीरदासजी कहते हैं कि बुद्धिहीन मछली अपनी देह की रक्षा नहीं कर सकी क्योंकि उसने गहरे सरोवर का सेवन नहीं किया और जहां जाल रूपी काल उसके पास नहीं पहुंच सकता था। वह तो ऊपर ही तैरती रही और शिकारी के जाल में फंस गयी।
संक्षिप्त व्याख्या-सद्गुरु के ज्ञान के अभाव में मनुष्य सदैव ही मोह माया में चक्कर में फंसा रहता है और परमात्मा का स्मरण नहीं करता और जब अंतकाल आता है तो पछताता है। आदमी अपने जीवन को अक्षुण्ण मानकर भौतिक वस्तुओं का संग्रह करता है पर भक्ति करने के नाम पर नाकभौ सिकोड़ता है। अपना पूरा जीवन ऐसे ही व्यर्थ नष्ट कर देता है। ज्ञान के अभाव में वह जीवन के रहस्यों से अनभिज्ञ रहते हुए ही अपना शरीर त्याग देता है।