हृदय धड़के मातृभाषा में, भाव परायी बाज़ार
में मत खोलो।
कहें दीपकबापू खुशी हो या गम, निज शब्द हिन्दी
में बोलो।।
---------------
दिल के जज़्बात अपने हैं, अपनी जुबां
हिन्दी में बोलो।
दीपकबापू हमदर्दी के रास्ते अब अंग्रेजी से मत
खोलो।।
----------------------
अंग्रेजी में सम्मान कमाया नहीं, आत्मसम्मान भी
समाया नहीं।
‘दीपकबापू’ अब भी गरीब, खुद की जुबां का भी साया नहीं।
-------------------
गोरी जुबां अर्थ की काली, कैसे दिल में
अपने डाली।
दीपकबापू हिन्दी में लेते अर्थ, अंग्रेजी में
बजाते ताली।
----------------
राजाओं की स्तुति रोज करते, हिन्दीदिवस पर
भी पेट में भोज भरते।
‘दीपकबापू’ मातृभाषा के नाम पर, कभी हिंग्लिश के शोज भी करते।।
..........................
हिन्दी के शब्द महंगे नहीं बिकते, इसलिये बाज़ार में
कम दिखते।
दीपकबापू अंग्रेजी के सेवक, छद्मरूप में
हिंदी की दम दिखते।।
---------------
दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment