हम अपने दैनिक जीवन में अनेक लोगों के संपर्क में आते हैं। किन्हीं लोगों का हम उपकार करते हैं तो कोई
हमारा करता है पर इसका प्रतिकार कहीं होता है कहंी नहीं। सामान्य मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह किसी
संकट में पड़े साथी, रिश्तेदार या अन्य व्यक्ति की मदद को तत्पर हो जाता है। हम जब समाज की
व्यवस्था की बात करते हैं तो वह बनता ही इसलिये है कि लोग एक दूसरे के साथ संबंध
सहजता से निभायें। इसी समाज में कई लोगों
की ऐसी प्रवृत्ति भी देखी जाती है कि वह काम निकल जाने के बाद साथी, मित्र और रिश्तेदार से
दूध में से मक्खी निकालने की भांति संपर्क तोड़ देते हैं।
प्रतिकार भाव से रहित ऐसे व्यक्ति अंततः समाज में अविश्वसनीय हो जाते हैं।
कौटिल्य अर्थशास्त्र में कहा गया है कि-----------
उपकारं करोम्यस्यं ममाप्येष करिष्यति।अयञ्वापि प्रतीकारो रामसुग्रीवयोरिव।।हिन्दी में भावार्थ-मैंने उसका उपकार किया तो वह भी करेगा-राम सुग्रीव के बीच इसी तरह हुइ संधि प्रतिकार संधि कहलाती है।मयास्योपकृतं पूर्वे ममाप्येष करिष्यति।इतिः या क्र्रियते सन्धिः प्रतीकारः स उच्यते।।हिन्दी में भावार्थ-मैंने पहले उसका उपकार किया तो वह भी मेरा करेगा-इसे प्रतिकार संधि कहा जाता है।
प्रतिकार संधि मैत्री का भी रूप है जिसके बारे में कहा जाता है कि वह की
नहीं जाती वरन् स्वतः भाववश हो जाती है। यह ठीक है कि भाववश लोग एक दूसरे जुड़े
रहते हैं पर इसका आशय यह कतई नहीं है कि वह परोपकार कर प्रतिकार की अपेक्षा न
करें। निष्काम कर्म या नेकी कर दरिया में
डाल का सिद्धांत ज्ञानी अपनाते हैं पर इस संसार में सभी ऐसे नहीं होते। अतः जिन
लोगों को अपनी समाज मेें गरिमा बनाये रखना र्है वह परोपकार कर कोई भले ही याचना न
करे पर लाभ लेने वाले को उसका प्रतिकार करने के लिये तत्पर होना चाहिये। अगर वह ऐसा नहीं करता तो परोपकार करने वाला
निराश हो जाता है और कालांतर में काम करने पर मुंह भी फेर सकता है।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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