उज्जैन में महाकाल मंदिर में क्षिप्रा का पानी घुस गया है। भारतीय धार्मिक
विचाराधाराओं के विरोधी यह कह सकते हैं कि जो महाकाल अपनी रक्षा नहीं कर सका वह
अपने भक्तों की रक्षा क्या करेगा? विदेशी विचाराधारा के प्रचारकों ने अनेक पत्थर की मूर्तियों को तालाब मे
डुबोकर इस तरह के तर्क ही दिये। भारतीय
बुद्धिमानों ने भी लकड़ी की मूर्तियां जलाकर यह तर्क दिये कि जो अपने को जलने से
नहीं बचा सका वह अपने भक्तों को इस सांसरिक आग से क्या बचायेगा? बहरहाल इस तरह की बहसें
धर्म से अधिक अधर्म को ही जन्म देती हैं।
भारत की प्राचीन नगरी में स्थित महाकाल के गर्भ में बाढ़ आयी फिर भी वहां
प्रतिमायें बची रहीं-उनकी शक्ति का प्रमाण तर्क के रूप में आस्थावान दे सकते हैं।
इस तरह के विवाद और उनका प्रतिकार करना अज्ञान तथा अहंकार का ही प्रमाण
होता है।
अध्यात्मिक साधकों के लिये महाकाल के गर्भ गृह में जल देवता के प्रवेश करना
पूरे विश्व में भौतिकता के नाम पर प्रकृत्ति से छेड़छाड़ के दुष्परिणाम के अलावा कुछ
नहंी है । महाकाल जैसे स्थान अध्यात्मिक साधकों के लिये ध्यान आदि के लिये
महत्वपूर्ण स्थान होते हैं। उनकी आस्था
में ज्ञान का पुट भी होता है इसलिये वह मूर्तियों के जल में डूबने से विचलित नहीं
होते न ही जलदेवता के चुंगुल से मुक्त
होने पर प्रसन्न होते हैं।
उज्जैन भारत की सबसे प्राचीन अध्यात्मिक नगरी है। महान ग्रंथ श्रीमद्भागवत् गीता के प्रवर्तक भगवान श्रीकृष्ण के गुरु
संदीपनि ऋषि यही निवास करते थे। यहीं
विक्रमादित्य नाम के उस राजा ने राज्य किया जिसे राजधर्म का प्रतीक माना जाता
है। हमारी कामना है कि जल्द ही उज्जैन में
सामान्य स्थिति वापस हो। मन में इच्छा तो है कि जल्द ही महाकाल के दरबार में ध्यान
कर हम अपनी योग साधना का परीक्षण करें।
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दीपक राज कुकरेजा ‘‘भारतदीप’’
ग्वालियर मध्यप्रदेश
ग्वालियर मध्यप्रदेश
Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep"
Gwalior Madhyapradesh
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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