आजकल उधार लेकर घी पीने की प्रवृत्ति पूरे विश्व में बढ़ रही है। हमारे देश में तो भौतिकता का मायाजाल इस कदर फैला है कि अनेक लोग अपनी आय की क्षमता से अधिक ऋण लेकर फंस जाते हैं और भुगतान न करने के कारण उनका जीवन दूभर होता है। अनेक लोग तो निराशा और अवसाद में अपनी देह लीला समाप्त कर लेते हैं।
लोग अपनी क्षमता से अधिक का लक्ष्य निर्धारित करते हैं इसलिये नाकाम होने पर विलाप करते हैं। खान पान और रहन सहन की आधुनिक वस्तुओं और साधनों के उपयोग से जहां मानव देह की क्षमता कम हुई है वहीं अधिकतर लोग अपने बड़े और जटिल लक्ष्य निर्धारित करने लगे हैं जिसमें नाकामी के अलावा कुछ नहीं मिलता।
इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है कि
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यत्कर्मकुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः।
त्तप्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जवेत्।।
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यत्कर्मकुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मनः।
त्तप्रयत्नेन कुर्वीत विपरीतं तु वर्जवेत्।।
‘जिस काम को करने से मन में अशांति हो उसे तो कभी करना ही नहीं चाहिए। जिससे मन में शांति होने के साथ ही आत्मा प्रसन्न हो उसे त्वरित करने के लिये तत्पर होना बहुत अच्छा है।’’
सर्व परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्।
एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः।।
एतद्विद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयोः।।
‘‘अपना जो काम दूसरे के अधीन हो उनको न करना ही श्रेयस्कर है। केवल उन्हीं कार्यों को करना चाहिए जो अपने कर्म शक्ति के अधीन संपन्न हो सकते हैं।’’
इसका सबसे अच्छा उदाहरण हम आधुनिक शिक्षा पद्धति को ले सकते हैं। छात्र छात्रायें अपनी शिक्षा इस आशा से ग्रहण करते हैं कि उनको कहीं नौकरी मिल जायेगी। अनेक लोगों को मिल भी जाती है पर सभी ऐसे अवसर नहीं पाते कि अपने स्तर के अनुकूल रोजगार प्राप्त करें। इसी कारण बेरोजगारी बढ़ रही है और अनेक युवकों की युवावस्था बीत जाती है पर उनको काम नहीं मिल पाता। इसका कारण यह है कि उनका लक्ष्य पराधीन है। वह अंधेरे में अपने तीर चलाते हैं। सभी को यही लगता है कि उनको बैठकर काम करने वाला काम मिल जायेगा। उनकी कमीज की कालर हमेशा सफेद रहेगी और पेट की तो चिंता ही नहीं रहेगी।
कहने का अभिप्राय यह है कि हमें अपने लक्ष्य अपने पर निर्भर होकर रहना चाहिए। केवल कल्पना या अनुमान में बहकर अपना काम करना हमेशा ही सुखद नहीं रहता।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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