हमारा भारतीय अध्यात्मिक दर्शन महिलाओं रक्षा तथा सम्मान को लेकर हमेशा ही संवदेनशील विचारधारा का प्रवर्तक माना जाता है। इसी कारण अनेक बुजुर्ग लोग किसी दूसरे की कन्या के दोषों की चर्चा एकांत में भी करने से कतराते हैं। इतना ही नहीं कुछ लोग तो इतने सात्विक होते है कि वह हर किसी की कन्या की मंगल कामना करते हुए यही कहते हैं कि बिटियाऐं तो सांझी होती है। इसका मतलब यह है कि कन्याओं के प्रति हमारे समाज में संवेदनशीलता इस कदर है कि किसी की बेटी पर दोषारोपण करना अपराध समझा जाता है।
बदलते समय ने लड़कियों के प्रति संवदेनशीलता की भावना को पूरी तरह समाप्त नहीं तो क्षीण अवश्य कर दिया है। लड़कियों के खान पान और पहनावे पर सार्वजनिक रूप से चर्चा करने वालों की कमी नहीं है। इसके पीछे आज के मनोरंजन के साधन ही जिम्मेदार हैंे जिनमें प्रसारित सामग्री ने नारी की लज्जा सुलभ चंचलता के स्थान पर उसके दैहिक सौदर्य को बाज़ार में लाकर नारी के सम्मान को सस्ता बना दिया है। अब तो नारी सम्मान का नारा इस कदर हमेशा लगता है कि जैसे सारा समाज ने इसे मान लिया है पर वास्तविकता यह है कि आज के भौतिकवादी ने नारी को एक तरह से भोग्य और दर्शनीय वस्तु बना दिया है जबकि वह मनुष्य समाज का पुरुष की तरह समान अस्तित्व रखने वाली जीव है।
इस विषय पर मनुस्मृति में कहा गया है
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अकन्येति तु यः कन्यां ब्रूयाद्द्वेषेण मानवः।
सः शर्त प्राप्तनुयाद्दण्डं तस्या दोषमदर्शवन्।।
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अकन्येति तु यः कन्यां ब्रूयाद्द्वेषेण मानवः।
सः शर्त प्राप्तनुयाद्दण्डं तस्या दोषमदर्शवन्।।
‘‘यदि कोई मनुष्य केवल शत्रु भाव से किसी निर्दोष कन्या पर दोषापरोपण करता पर उसे साबित नहीं करता तो ऐसी स्थिति में इस अपराध के लिए दंड देना चाहिए।"
यस्तु दोषावर्ती कन्यामाख्याय प्रयच्छति
तस्य कुर्वन्नृपो दण्डं स्वयं क्षण्णवतिं पणान्।।
तस्य कुर्वन्नृपो दण्डं स्वयं क्षण्णवतिं पणान्।।
‘‘यदि कोई मनुष्य अपनी कन्या के दोष को छिपाकर उसका विवाह करने वाले व्यक्ति पर भी दंड का भागी कहलाता है।"
वैसे स्त्री और पुरुष अपने गुणों के कारण स्वतः ही सम्मान पाते हैं पर आधुनिक शिक्षा से ओतप्रोत समाज भारतीय अध्यात्मिक दर्शन से अनभिज्ञ होने के कारण गुणवान स्त्री भी उसे ही मानता है जो दिखने में सुंदर हो। वार्तालाप और व्यवहार में उच्च स्तर की अपेक्षा आजकल बहुत कम लोग करते हैं जबकि जीवन में उसका ही सबसे अधिक महत्व है। बाह्य सौंदर्य का क्षणिक होता है जबकि व्यवहार और वार्तालाप की वजह से ही जीवन की गाड़ी चलती है। इसलिये आजकल की नयी पीढ़ी को इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि वह अपने जीवन साथी के चुनाव में सतर्कता बरतें।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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