अनेक लोगों की आदत होती है कि जरा जरा बात पर उत्तेजित होकर क्रोध करते हैं। इसके अलावा अनेक लोगों की आदत होती है कि वह अचानक ही बिना किसी मतलब की बात पर ही क्रोध कर यह दिखाना चाहते हैं कि उनकी चिंत्तन और चेतन क्षमता दूसरों से अधिक है। देखने के लिये लोग भले ही उनके सामने कुछ न कहें पर अंदर ही अंदर उनसे चिढ़ने लगते हैं। इस व्यवहार के कारण समाज उनके प्रति तिरस्कार का भाव रखने लगता है। दरअसल वैसे तो क्रोध हमेशा ही विनाश और दुःख कारण बनता है पर निरंतर बातचीत में अपनी क्रोध शक्ति का प्रदर्शन करना अत्यंत ही बदनामी दिलाता है।
अकस्मादेव यः कोषादभष्णं बहु भाषते।
कौटिल्य का अर्थशास्त्र में कहा गया है कि
-------------------
तस्यमबुद्धिजते लोकः सस्फुतिंगंदिवानतात्।।
-------------------
तस्यमबुद्धिजते लोकः सस्फुतिंगंदिवानतात्।।
‘‘जिस मनुष्य अचानक ही क्रोध करने लगता है लोग उसके विपरीत हो जाते हैं, जैसे चिंगारी उड़ाने वाली अग्नि से लोग उतेजित हो जाते हैं।’’
कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो आपसी वार्तालाप में दूसरों के प्रति गाली गलौच का प्रयोग करते हैं। जो व्यक्ति सामने नहीं है उसकी कमजोरियों का बखान कर उस पर शक्ति प्रयोग करने की बात करते हैं। छोटे छोटे विषयों पर अपनी आक्रामक अभिव्यक्ति प्रदर्शित कर यह प्रमाणित करते हैं कि वह शक्तिशाली पुरुष हैं । ऐसे लोगों से कोई डरता नहीं है अलबत्ता कोई मुंह पर नहीं कहता यह अलग बात है। मगर जब ऐसे मनुष्य के बारे में समाज यह जान लेता है कि वह निरर्थक क्रोध दिखाने का प्रयास करते हैं पर वास्तव में शक्तिहीन है तो फिर उनका सार्वजनिक रूप से मजाक भी बनने लगता है। इसलिये जहां तक हो सके अपने व्यवहार में सहजता का प्रदर्शन करना चाहिए। कभी भी बड़े बोल नहीं बोलना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्द लेख पत्रिका
2.शब्दलेख सारथि
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
४.शब्दयोग सारथी पत्रिका
५.हिन्दी एक्सप्रेस पत्रिका
६.अमृत सन्देश पत्रिका
No comments:
Post a Comment