मनुष्य अपने जीवन में संबंध बढ़ाकर आनंद प्राप्त करना चाहता है। अधिक से अधिक मित्र बनाकर अपने आपको ही इस बात की तसल्ली देता है कि वह शत्रुओं से बचा रहेगा। उसी तरह अनेक लोग अपने घर की स्त्री से बाहर की स्त्रियों से संपर्क रखकर यह सोचता है कि वह जीवन आनंद से बितायेगा। ऐसे अनेक भ्रम हैं जिनके चक्कर में पढ़कर आदमी अपना जीवन कष्टप्रद बना लेता है। उसी तरह मनुष्य अनेक स्थानों पर संपत्ति का निर्माण भी यही सोचकर करता है कि एक जगह से परेशान होकर दूसरी जगह आराम से जाकर रहेगा। लालची, लोभी और अहंकार मनुष्य तर्क की कसौटी पर काम न कर केवल काल्पनिक सुखों के आधार पर चलता है जो कि उसे नहीं मिल पाते। इसी कारण उसे आनंद की जगह तनाव की प्राप्ति होती है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि
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कुराज्यनेकृतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽस्ति निवृत्तिः।
कुदारदारैश्च केतो गृहे रतिः कुशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः।।
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कुराज्यनेकृतः प्रजासुखं कुमित्रमित्रेण कुतोऽस्ति निवृत्तिः।
कुदारदारैश्च केतो गृहे रतिः कुशिष्यमध्यापयतः कुतो यशः।।
‘दुष्ट राजा के राज्य से प्रजा को सुख नहीं मिलता। धोखा देने वाले मित्र की संगत में दुःख ही मिलता है उसी तरह दुष्ट स्त्री को भार्या बनाने से प्रेम मिलना मुश्किल है। किसी गुरु को भी कुठित मानसिकता वाले शिष्य को शिक्षा देने से यश नहीं मिलता।"
जितना भी हम अपने संबंधों और संपत्ति का विस्तार करते हैं कालांतर में उनको निभाने और संभालने का भी संकट उत्पन्न होता है। इसके अलावा जो अपेक्षाऐं हम करते हैं वह सभी पूर्ण हो जायें यह संभव नहीं है। उम्र और समय के साथ आदमी की शक्ति कभी कभी क्षीण भी होती है तब जीवन में विस्तारित कृत्य अत्यंत कष्टकारक हो जाते हैं। इसलिये जहां तक हो सके सीमित साधनों के साथ सीमित लक्ष्यों की पूर्ति का प्रयास करना चाहिए। अधिक अपेक्षाऐं करना ठीक नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि किसी वस्तु की प्राप्ति की इच्छा हो या किसी व्यक्ति से संबंध स्थापित करने का भाव मन में हो तब तर्क की कसौटी पर विचार करना चाहिए।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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