समाज हित के लिये राज्य और राजा की व्यवस्था पूरे विश्व में स्वीकार की गयी है। किसी भी राज्य के कार्य का दायरा अत्यंत विस्तृत होता है। केवल एक राजा या उसके कुछ अनुचर मिलकर पूरे राज्य की व्यवस्था नहीं चला सकते इसलिये राजा और प्रजा के बीच एक बहुत बड़ा संगठन होता है जिसमें प्रथक प्रथक विभाग होते हैं जिनमें कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिये पदों का सृजन किया जाता है। राज्य प्रमुख या राजा तो एक ही होता है पर उसके अंतर्गत अनेक राजकीय कर्मी अनुचर पदों के नाम से शासन करते हैं। यही कारण है कि प्रजा में से अनेक लोग राजकीय पदों पर भी सुशोभित होते हैं पर राजकीय पद के अहंकार में वह प्रजाजनों से ही राजा की तरह बर्ताब करते हैं। यह बुरा नहीं है पर अगर ऐसे राजकीय पदधारी लोग राजनीति नहीं जानते तो वह समाज का संकट बन जाते हैं। इतना ही नहीं अगर वह सक्षम न हों तो राजा के शत्रुओं के लिये हमले करना आसान हो जाता है। इसलिये यह आवश्यक है कि राजकीय पदों पर राज्य प्रमुख के अनुचर पदों वाले लोग भी राजनीति शास्त्र का ज्ञान रखें।
साम्ना दोनेन भेदेन समस्तैरथवा पृथक।
विजेतुः प्रयतेतनारीन्न युद्धेन कदाचन्।।
‘‘जिस राज्य प्रमुख को जीत की इच्छा हो वह साम, दाम तथा भेद नीति के माध्यम से किसी भी शत्रु को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करे। अगर उसमें असफल हो तो फिर उसे दंडात्मक कार्यवाही यानि युद्ध करना ही चाहिए।’’
त्रयाणामप्युपायानां पूर्वोक्त्तानामसम्भवे।
ततो युध्येत संपन्नो विजयेत रिपून्यथा।।
‘‘साम, दाम तथा भेद नीतियों में सफलता न मिले तो फिर राजा को अपने शत्रु के विरुद्ध पूरी तैयारी के बाद युद्ध छेड़ना चाहिए ताकि निश्चित रूप से विजय मिल सके।
विजेतुः प्रयतेतनारीन्न युद्धेन कदाचन्।।
‘‘जिस राज्य प्रमुख को जीत की इच्छा हो वह साम, दाम तथा भेद नीति के माध्यम से किसी भी शत्रु को अपने अनुकूल बनाने का प्रयास करे। अगर उसमें असफल हो तो फिर उसे दंडात्मक कार्यवाही यानि युद्ध करना ही चाहिए।’’
त्रयाणामप्युपायानां पूर्वोक्त्तानामसम्भवे।
ततो युध्येत संपन्नो विजयेत रिपून्यथा।।
‘‘साम, दाम तथा भेद नीतियों में सफलता न मिले तो फिर राजा को अपने शत्रु के विरुद्ध पूरी तैयारी के बाद युद्ध छेड़ना चाहिए ताकि निश्चित रूप से विजय मिल सके।
आधुनिक लोकतंत्र में राज्य प्रमुख की शक्तियों का विकेंद्रीकरण हो गया है इसलिये अनेक स्थानीय, प्रादेशिक तथा केंद्रीय स्तर के पद भी राज्य प्रमुख की तरह आकर्षक प्रभाव रखने वाले हो गये हैं। उनके आकर्षण के शिकार लोग उनको पाना चाहते हैं। उनको लगता है कि यह पद समाज पर प्रभाव दिखाने के लिये सबसे आसान मार्ग हैं। वह कभी यह नहीं सोचते कि इन पदों से राज्य का उपभोग तो किया जाता है पर अपने कौशल से प्रजा की रक्षा भी की जाती है। इसके लिये राजनीति शास्त्र का ज्ञान होन आवश्यक है। खासतौर से राज्य के शत्रुओं से निपटने की कला आना चाहिए। जिसमें वीरता के साथ प्रबंध कौशल भी होना चाहिए। यही कारण है कि हम देख रहे हैं कि विश्व राजनीति में ऐसे लोग भी शीर्ष पदों पर पहुंच रहे हैं जो प्रत्यक्ष शासन करते दिखते हैं पर उनकी डोर धनपतियों, बाहुबलियों तथा चालाक लोगों के हाथ में होती है। हिटलर जैसे लोग भी इतिहास में हुए हैं पर शक्ति के बल पर हासिल सत्ता अपने राज्य का भला करने की बजाय उसे हानि पहुंचाते हैं। शक्ति के मद में चूर अनावश्यक रूप से युद्ध करते हैं और बाद में मारे जाते हैं। फिर गद्दाफी जैसे लोग भी हुए हैं जो शक्ति के दम पर सत्ता प्राप्त करने के बाद भ्रष्ट हो जाते हैं और प्रजा के शत्रु हो जाते हैं।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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