पाश्चात्य संस्कृति के प्रवाह तले हमारे देश की अध्यात्मिक संस्कृति मान्यताऐं रौंदी जा रही हैं। अंग्रेजी शिक्षा से ओतप्रोत देश की शिक्षा और नियम बनाने वाले विधाता कुछ विदेशी तो कुछ देशी मान्यताओं के मिक्चर से समाज को नमकीन की तरह सजा रहे हैं। ऐसे में संयुक्त परिवार को विघटन हुआ है। सभी लोगों ने स्वयं के विकास को ही आत्मनिर्भरता का प्रमाण मान लिया है। दूसरे के साथ संयुक्त उपक्रम सभी को गुलामी जैसा लगता है। परिवार की परिभाषा या सीमा माता पिता और बच्चे तक ही सिमट गयी है। दादा, दादी और चाचा चाची अब परिवार के बाहर हो गये हैं। भाई और भाई का संयुक्त उपक्रम में काम करना अब उस पुरानी परंपरा का हिस्सा मान लिया गया है जिसकी आवश्यकता अब अनुभव नहीं की जाती। उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह कि पिता के साथ पुत्र का संयुक्त उपक्रम होना उसके कमजोर व्यक्तित्व का प्रमाण माना जाता है। हर कोई यह चाहता है कि उसका दामाद स्वतंत्र उपक्रम वाला हो। भाई या पिता के साथ संयुक्त उपक्रम होने पर उसे गुलाम की तरह देखा जाता है।
यही स्थिति आधुनिक महिलाओं की भी है। वह पति को स्वतंत्र उपक्रम का स्वामी या फिर किसी कार्यालय में अधिकारी के रूप में देखना चाहती हैं। इसके अलावा भी ढेर सारे कारण है जिससे हमारा समाज और राष्ट्र कमजोर हो रहा है।
एकता के विषय पर चाणक्य नीति में कहा गया है कि
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बहुनां चैव सत्वानां समवायो रिपुंजयः।
वर्षधाराधरो मेधस्तृणैरपि निवार्यते।।
‘‘बहुत लोगों के समूह में एकता होने की वजह अपने शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति होती है। उसी तरह जैसे वर्षा की धारा प्रवाहित करने वाला बादल को तिनकों का समूह झौंपड़ी में प्रवेश से रोक लेता है।
बहुनां चैव सत्वानां समवायो रिपुंजयः।
वर्षधाराधरो मेधस्तृणैरपि निवार्यते।।
‘‘बहुत लोगों के समूह में एकता होने की वजह अपने शत्रुओं को परास्त करने की शक्ति होती है। उसी तरह जैसे वर्षा की धारा प्रवाहित करने वाला बादल को तिनकों का समूह झौंपड़ी में प्रवेश से रोक लेता है।
एक बात निश्चित रूप से तय है कि व्यक्ति अपने परिवार या समाज से मिलकर ही शक्तिशाली होता है और साथ ही यह भी सच है कि व्यक्ति के मजबूत होने से परिवार, परिवार से समाज, और समाज से राष्ट्र मजबूत होता है। कहने का अभिप्राय यह है कि व्यक्ति से राष्ट्र और राष्ट्र से व्यक्ति शक्तिशाली होता है पर इसके लिये जरूरी है कि लोगों की आपस में एकता है जो कि निज स्वार्थ पूर्ति के भाव तथा अहंकार के चलते नहीं हो पाती। यही कारण है कि आज हम अपने राष्ट्र में लोगों में अकेलेपन का तनाव बढ़ता देख रहे हैं।
अगर हम चाहते हैं कि राष्ट्र शक्तिशाली हो तो व्यक्तियों को मजबूत होना पड़ेगा जिसके लिये यह जरूरी है कि लोग स्वयं में एकता के साथ काम करे।
संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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