स्वस्वामिशक्त्यो स्वरूपोपलब्धिहेतुः संयोगः।।
"जब स्व तथा स्वामी की शक्ति के स्वरूप का ज्ञान प्राप्त हो जाता है तो उसे संयोग कहा जाता है।"
हमारी सृष्टि के दो रूप हैं एक तो भौतिक प्रकृति दूसरा अभौतिक जीवात्मा। प्रकृति स्वयं एक शक्ति है तो जीवात्मा भी अपना स्वामी स्वयं है। मनुष्य इस प्रथ्वी पर पंच तत्वों से बनी अपनी देह के साथ विचरण करते हुए सांसरिक पदार्थों का उपभोग करता है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। जब कोई मनुष्य तत्वज्ञान प्राप्त करता है तब वह दृष्टा की तरह अपना जीवन व्यतीत करता है। अपनी इंद्रियों के साथ कर्म करते हुए वह अपने कर्तापान का अहंकार नहीं पालता।
यहां अज्ञानवश हर आदमी अपने इर्दगिर्द स्थित भौतिक संसार के स्वामी होने का भ्रम पाल लेता है। वह नहीं जान पाता कि उसकी देह में स्थित मन, बुद्धि और अहंकार ऐसी प्रकृतियां हैं जो उसे दैहिक स्वामित्व का बोध कराकर भ्रमित करते हुए इधर से उधर दौड़ाती हैं। यही कारण है कि भौतिक देह और अभौतिक जीवात्मा का कभी आपस में मेल नहीं हो पाता। आदमी मन को ही आत्मा समझने लगता है।
जब योग साधना, ध्यान, स्मरण तथा भक्ति से कोई मनुष्य इस सत्य को जान लेता है तब उसे संयोग कहा जाता है वरना तो सारा संसार दुर्योग का शिकार होकर जीवन तबाह कर लेता है। दैहिक प्रेम क्षीण हों जाता है तब घृणा या उदासीनता पनपती है। उसी तरह स्वार्थ की मित्रता का क्षरण भी जल्दी होता है। सकाम भक्ति में कामना पूर्ण न होने पर मन संसार से विरक्त होने लगता है मगर जो तत्वज्ञान को जान लेते हैं वह कभी हताश नहीं होता। वह ऐसे संयोग देखकर मन में क्षणिक प्रसन्नता होती है जो अंततः दुर्योग का कारण बनती है।
यह संसार संकल्प और बने संयोग और दुर्योग का खेल है। मन में जैसा संकल्प होगा वैसी ही हमारी दुनियां होगी। सीधी मत कहें तो मन का योग ही हमारे सामने दुर्योंग और संयोग बनाता है। हम अपने विचार और आचरण पवित्र रखेंगे तो हमारे संकल्प भी पवित्र होंगे और वैसे ही हमारे सामने दृश्य उपस्थित होंगे और वैस ही लोग हमारे संपर्क में आयेंगे।
यह संसार संकल्प और बने संयोग और दुर्योग का खेल है। मन में जैसा संकल्प होगा वैसी ही हमारी दुनियां होगी। सीधी मत कहें तो मन का योग ही हमारे सामने दुर्योंग और संयोग बनाता है। हम अपने विचार और आचरण पवित्र रखेंगे तो हमारे संकल्प भी पवित्र होंगे और वैसे ही हमारे सामने दृश्य उपस्थित होंगे और वैस ही लोग हमारे संपर्क में आयेंगे।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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