हम अपनी छोटी छोटी आदतों की तरफ ध्यान नहीं देते जबकि वही हमारे लिये जबरदस्त कष्ट का कारण बनती हैं। कुछ लोगों की आदत होती है कि वह अपने नाखून चबाते हैं। वह अपनी इस आदत पर ध्यान नहीं देते जबकि इससे उनको देखने वालों की दृष्टि में छवि खराब होती है। उन लोगों को यह मालुम नहीं कि हमारे नाखूनों में मिट्टी के साथ विषैले कीटाणु भी होते हैं। चबाने से वह मुख से होते हुए पेट में जाकर बीमारी पैदा करते हैं। यह बात आधुनिक विज्ञान अब कह रहा है जबकि हमारं मनु महाराज यह बात बहुत पहले ही कह गये।
मनु महाराज कहते हैं कि
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न विगृह्य कथां कुर्याद् बहिर्माल्य न धारेवेत्।
गवां च यानं पुष्ठेन सर्वथैव विगर्हितम्।।
‘‘उच्छ्रंखलता से वार्तालाप करना, दूसरों को दिखाने के लिये सोने की चैन पहनकर दिखाना और बैल की पीठ पर सवारी करना निंदाजनक कार्य हैं।’’
लोष्ठमर्दी तृपाच्छेदी नखखादी च यो नरः।
स विनाशं व्रजत्याशु सूचकोऽशुचिरेव सः।।
‘‘ऐसा व्यक्ति शीघ्र नाश को प्राप्त होता है, जो मिट्टी के बरतन पर मिट्टी के ढेले को साफ करता है, तिनकों को उखाड़ता है, अपने नाखूनों को चबाता है तथा चुगलखोरी करता है और अस्वच्छ रहता है।’’
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न विगृह्य कथां कुर्याद् बहिर्माल्य न धारेवेत्।
गवां च यानं पुष्ठेन सर्वथैव विगर्हितम्।।
‘‘उच्छ्रंखलता से वार्तालाप करना, दूसरों को दिखाने के लिये सोने की चैन पहनकर दिखाना और बैल की पीठ पर सवारी करना निंदाजनक कार्य हैं।’’
लोष्ठमर्दी तृपाच्छेदी नखखादी च यो नरः।
स विनाशं व्रजत्याशु सूचकोऽशुचिरेव सः।।
‘‘ऐसा व्यक्ति शीघ्र नाश को प्राप्त होता है, जो मिट्टी के बरतन पर मिट्टी के ढेले को साफ करता है, तिनकों को उखाड़ता है, अपने नाखूनों को चबाता है तथा चुगलखोरी करता है और अस्वच्छ रहता है।’’
इसी तरह चाहे जब हम दूसरों की निंदा या चुगली करने लगते हैं। झूठे आरोप लगाकर दूसरे को बदनाम करते हैं। ऐसे एक नहीं अनेक कारनामे हैं जो दिखते बहुत छोटे हैं पर उनका दुष्प्रभाव व्यापक होता है।
अतः हमें अपने उठने बैठने, चलने फिरने तथा खाने पीने की आदतों पर ध्यान देना चाहिए। इसके लिये आवश्यक है कि योग तथा ध्यान कर अंतर्मुखी बना जाये। हमेशा बहिर्मुखी रहने से हम आत्ममंथन नहीं कर पाते और छोटी मोटी बुरी आदतों के बुरे प्रभाव का शिकार बने रहते हैं।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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