हम लोग सामाजिक तथा पारिवारिक नये संबंधों का निर्माण करते हुए अन्य व्यक्तियों के आचरण, विचार तथा व्यवहार के तौर तरीकों पर विचार नहीं करते। अब तो यह स्थिति यह हो गयी है कि लोग दादागिरी, गुंडागर्दी तथा बेईमान करने के लिये बदनाम लोगों को अपने साथ रखकर प्रसन्नता अनुभव करते हैं। अक्सर हमारे देश के लोग यह सवाल करते हैं कि देश में भ्रष्टाचार कम क्यों नहीं हो रहा? उत्तर में सरकार को दोष देकर चुप हो जाते हैं। सच बात तो यह है कि हमारे समाज में चेतना की कमी तथा वैचारिक आलस्य के परिणाम से ही देश में अपराध और भ्रष्टाचार बढ़ा है। इसके लिये सभी लोग जिम्मेदार है। सभी लोगों को एक दूसरे के बारे पता है कि कौन क्या करता है? कौन भ्रष्टाचारी है और कौन बेईमान? कौन तस्कर है कौन व्याभिचारी? मगर प्र्रेम, विवाह, सत्संग या नित्य कर्म के आधार पर संपर्क कायम करने वाले लोग यह देखने का प्रयास करते हैं कि किसका निज स्वरूप क्या है? यकीनन नहीं!
इस विषय पर मनु महाराज कहते हैं कि
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उत्तमैरुत्तमैर्नित्यं संबंधनाचरेत्सह।
निनीषुः कुलमुत्कर्षमधमानधर्मास्त्यजेत्।
"अपने परिवार की रक्षा तथा सम्मान में वृद्धि के लिये अच्छे परिवारों के साथ अपनी कन्या और पुत्र के संबंध बनाने चाहिए। खराब आचरण तथा धर्म विरोधी पुरुषों के परिवारों के साथ किसी प्रकार का संबंध स्थापित करना ठीक नहीं है।"
उत्तमानुत्तमान्गच्छन्हीनाश्च वर्जवन्।
ब्राम्हण श्रेष्ठतामेति प्रत्यावयेन शूद्रताम्।।
"श्रेष्ठ पुरुषों से संबंध जोड़ने और नीच तथा अधम पुरुषों से परे रहने वाले विद्वान की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। इसके विपरीत श्रेष्ठ लोगों की बजाय नीच पुरुषों से संबंध बनाने वाला मनुष्य और उसका कुल कलंकित हो जाता है।"
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उत्तमैरुत्तमैर्नित्यं संबंधनाचरेत्सह।
निनीषुः कुलमुत्कर्षमधमानधर्मास्त्यजेत्।
"अपने परिवार की रक्षा तथा सम्मान में वृद्धि के लिये अच्छे परिवारों के साथ अपनी कन्या और पुत्र के संबंध बनाने चाहिए। खराब आचरण तथा धर्म विरोधी पुरुषों के परिवारों के साथ किसी प्रकार का संबंध स्थापित करना ठीक नहीं है।"
उत्तमानुत्तमान्गच्छन्हीनाश्च वर्जवन्।
ब्राम्हण श्रेष्ठतामेति प्रत्यावयेन शूद्रताम्।।
"श्रेष्ठ पुरुषों से संबंध जोड़ने और नीच तथा अधम पुरुषों से परे रहने वाले विद्वान की प्रतिष्ठा बढ़ जाती है। इसके विपरीत श्रेष्ठ लोगों की बजाय नीच पुरुषों से संबंध बनाने वाला मनुष्य और उसका कुल कलंकित हो जाता है।"
जब हम देश में नैतिक आचरण में आई गिरावट तथा संवेदनहीनता की बात करते हैं तो समाज या सरकार को कोसना सबसे आसान लगता है पर अगर हम अपना निज आचरण तथा वैचारिक दृढ़ता का अवलोकन करें तो यह साफ दिखाई देगा कि कहीं न कहीं हमारा स्वार्थपूर्ण जीवन तथा समाज के प्रति दायित्व बोध हीनता ही इसके लिये जिम्मेदार है। अगर हमने निजी रिश्ते बनाने में केवल किसी आदमी का धनपति, बाहूबली तथा उच्च पदस्था होन ही मान लिया है तब यह भी मान लेना चाहिए कि समाज में सम्मान पाने का मोह दूसरे लोगों को येनकेन प्रकरेण सफलता पाना रह जाना बुरा नहीं है। श्रेष्ठ और त्यागी पुरुषों के प्रति लोगों का उपेक्षा का भाव रहना इस बात के लिये सभी को प्रेरित करता है कि अधिक से अधिक उपलब्धि पाकर समाज में सम्मान प्राप्त किया जाये। ऐसे में देश में व्याप्त व्यवस्था में परिवर्तन की अपेक्षा तभी संभव है जब हम अपने विचारों में परिवर्तन किया जाये।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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