आजकल बड़े तथा पहुंचे हुए लोगों से संपर्क बनने की कुछ प्रवृत्ति ही अधिक हो गयी है। पुलिस, प्रशासन, राजनीति से जुड़े तथा अर्थजगत के शिखर पुरुषों के साथ मेल कर लोग बहुत खुश होते हैं। सामान्य आदमी से मित्रता या व्यवहार करना अब लोगों के लिये बोझ बन गया है। अनेक लोग तो केवल पुलिस अधिकरियों, प्रशासन में उच्च पदस्थ तथा राजनीति में सक्रिय लोगों से एक दो बार मिल क्या लेते हैं सभी जगह उनसे अपने संपर्क होने की गाथा गाते हुए थकते नहीं है।
हर आदमी सामान्य स्तर के मित्रों, रिश्तेदारों और साथियों को हेय दृष्टि से देखता है क्योंकि उसको लगता है कि यह किसी काम के नहीं है। जबकि सच यह है कि अपने जीवन की दिनचर्या से जुड़े यही लोग बहुत काम के होते हैं यह अलग बात है कि वह समस्यायें सहजता से दूर करते हैं इसलिये इसका आभास नहीं होता।
कविवर रहीम कहते हैं कि
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रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।
‘‘बड़े लोगों को देखकर छोटे लोगों की उपेक्षा नहीं करना चाहिए। जहां सुई काम आती है वहां तलवार कुछ नहीं कर पाती।’’
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रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तलवारि।।
‘‘बड़े लोगों को देखकर छोटे लोगों की उपेक्षा नहीं करना चाहिए। जहां सुई काम आती है वहां तलवार कुछ नहीं कर पाती।’’
हमारे साथ कुछ सामान्य लोग ऐसे होते हैं जिनके पास रहते हुए उनकी उपयोगिता का अनुभव नहीं होता इसलिये बड़ी हस्तियों से संपर्क बनाने लगते हैं। जबकि सच यह है कि बड़े तथा अमीर लोग केवल स्वार्थ की वजह से छोटे लोगों से संपर्क रखते हैं ताकि समय आने पर उनकी मदद मिल जाये न कि उनकी मदद करें। ऐसी अनेक घटनायें हुई हैं जिनमें लोग बड़े बड़े संपर्क होने का दावा करते हैं पर संकट आने पर उनको अपने आसपास के सामान्य लोगों की सहायता पर ही आश्रित रहना पड़ा है। साथ ही यह भी देखा गया है कि विपत्ति आने पर छोटे लोग फिर भी सहारा देते हैं जबकि बड़े लोग मुंह फेर लेते हैं।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
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