सामान्यतः हर आदमी में यही चाहत होती है कि जहां चार लोग मिलें उसकी झूठी या सच्ची चाहे जैसी भी हो पर प्रशंसा जरूर हो। इसके लिये वह तमाम तरह के स्वांग रचता है। अनेक बार कुछ लोग आत्मप्रवंचना कर दूसरों को प्रभावित करने का प्रयास करते हैं। ऐसा कर सभी लोग अपने आपको धोखा देते हैं। प्रचार माध्यमों में क्रिकेट खिलाड़ियों तथा फिल्म अभिनेताओं का प्रचार देखकर अनेक लोग बौरा जाते हैं। लोग स्वयं या अपने बच्चों को नेता, क्रिकेट खिलाड़ी या अभिनेता बनाकर प्रतिष्ठा अर्जित करना चाहते हैं। चंद चेहरों को पर्दे पर देखकर सारे देश के लोग ऐसी चकाचौंध में खो जाते हैं कि वैसा ही बनने की चाहते में हाथपांव मारते हैं।
इधर अध्यात्मिक चैनलों पर संतों के प्रवचनों की चकाचौंध देखकर अनेक लोग ऐसे भी हो गये हैं जो प्राचीन ग्रंथों का थोड़ा बहुत अध्ययन कर वैसे ही बनना चाहते हैं। कहने का अभिप्राय यह है कि लोग योग्यता संचय या प्रतिभा निर्माण की बजाय प्रतिष्ठा अर्जन के लिये मरे जा रहे हैं। ज्ञान को रटना चाहते हैं धारण करना कोई नहीं चाहता। प्रबंध कौशल हो तो अल्पज्ञानी महाज्ञानी कहलाते हैं और अक्षम या नकारा लोग बड़े पदों पर भी सुशोभित हो जाते हैं। मगर सभी के लिये यह संभव नहीं है। सच तो यह है कि योग्य, प्रतिभाशाली, ज्ञानी तथा कुशल आदमी के लिये यही बेहतर है कि वह समय की प्रतीक्षा करे। वह ऐसे लोगों के बीच जाकर अपना गुणगान करने में अपना समय नष्ट न करे जो केवल अर्थ की उपलब्धि को ही सफलता का पैमाना मानते हैं।
संत कबीरदास जी कहते हैं कि
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जहां न जाको गुन लहै, तहां न ताको ठांव।
धोबी बसके क्या करे, दीगम्बर के गांव।।
‘‘जहां पर अपने गुण की पहचान न हो वहां अपना ठिकाना न बनायें। जहां वस्त्रहीन लोग रहते हैं वह कपड़े धोने के व्यवसायी का कोई काम नहीं है।’’
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जहां न जाको गुन लहै, तहां न ताको ठांव।
धोबी बसके क्या करे, दीगम्बर के गांव।।
‘‘जहां पर अपने गुण की पहचान न हो वहां अपना ठिकाना न बनायें। जहां वस्त्रहीन लोग रहते हैं वह कपड़े धोने के व्यवसायी का कोई काम नहीं है।’’
आजकल तो अंधों के हाथ बटेर लग गयी है। नकारा लोगों के पास पद, यश और धन आ गया है। ऐसे में वह योग्य आदमी की योग्यता से चिढ़ते हैं। उसकी गरीबी का मजाक बनाते हैं। इतना ही नहीं उनके चमचे और चेले भी उनका साथ निभाते हैं। ऐसे में अगर आप अपनी योग्यता, ज्ञान तथा भक्ति पर विश्वास करते हैं तो कभी दूसरे के कहने में न आयें न किसी दूसरी राह पर चलें। ऐसे अक्षम और नकारा लोगों का साथ छोड़ दें तो यही अच्छा है।
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संकलक, लेखक और संपादक-दीपक राज कुकरेजा ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athor and editor-Deepak Raj Kukreja "Bharatdeep",Gwalior
http://zeedipak.blogspot.com
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