भारत-पाकिस्तान के सीमा पर जो हालत हैं वह भविष्य में किसी बड़े युद्ध का संकेत हैं। ऐसा लगता है कि पाकिस्तान का भावी रूप क्या हो? यह तय होना शेष रह गया है। यह बात अब बेकार हो गयी है कि पड़ौसी बदला नहीं जा सकता-अगर दम हो तो उसका मकान तो खरीदा ही जा सकता है। पाकिस्तान का मतलब होता है केवल पंजाब-अब उसी का भविष्य तय होना है। जहां तक सीमा पर मुठभेड़ो का सवाल है वह लंबी चल सकती हैं क्योंकि भारत अपने बनाये तथा खरीदे गये हथियारों भी इस दौरान कर सकता है। जिस तरह अमेरिका अपने हथियार परीक्षण के लिये इधर उधर युद्ध करता है उसी तरह भारत भी कर सकता है। रूस और अमेरिका ने अपने अपने हथियार अरब देशों के लड़कों को बेच हैं-दोनों के बीच हथियार तथा तेल भंडार ही युद्ध का कारण है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि अब देखना यह है कि सऊदी अरब का क्या होता है? क्योंकि उसने शिया ईरान के साथ रूस से भी बैर लिया है। अगर अमेरिका में ट्रम्प का आगमन हुआ तो सऊदी अरब पर संकट आना तय है। ऐसे में पाकिस्तान का धार्मिक आधार एकदम समाप्त हो जायेगा तब भारत के लिये वह एक आसान शिकार होगा।
वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य बदल सकता है तो भारत भी उससे बच नहीं सकता। बहरहाल इस समय प्रचार माध्यमों में पाक के साथ मुठभेड़ों के समाचार छाये हुये हैं तो उन लोगों बेचैनी होती है जो रोज शाम अपना चेहरा पर्दे पर पर देखना चाहते हैं। यही कारण है कि अभिव्यक्त होने थोड़ा अवसर मिलता है तो वहां ज्यादा सक्रियता दिखाते हैं। यही कारण है कि पाक गोलाबारी में 16 नागरिकों के मारे जाने पर किसी ने दुःख नहीं जताया वरन् भोपाल में पुलिस के हाथों घोषित आतंकवादी मारे जाने पर बवाल मचाया क्योंकि प्रचार का यही एक तरीका था। उसके तत्काल बात एक पूर्व सैनिक की आत्महत्या पर भी उन्हें बवाल मचाने का अवसर मिला।
आत्महत्या करने वाले भी नायक बनते हैं यह अब देखने को मिल रहा है। यह देश की स्थिति है कि अस्पताल में जाकर राजनीतिक अखाड़ेबाजी हो रही है। उससे बुरी बात यह कि घर के आदमी की लाश जिसका अंतिम संस्कार होना चाहिये उसका उपयोग प्रचार के लिये हो रहा है।
भोपाल मुठभेड़ के तत्काल बाद पहले पिछड़ रहे ट्रम्प अब सर्वोक्षणों में हिलेरी से आगे हो गये हैं। अब तो इस मामले पर अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण से होना चाहिये। वैसे भी अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए पर भारत में हस्तक्षेप का आरोप लगता रहा है।
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हिन्दू भलमानस हो या खलमानस उसके रक्त में ब्रह्मज्ञान सहजता से प्रवाहित रहता है
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जनवादियों के साथ मुश्किल यह है कि एक मरता तो उसका नाम लेकर कहते किस किसको मारोगे हर घर में पैदा होगा? अब आठ मारे गये तो किस किसका नाम लें-इसी समस्या से परेशान हैं।
राजकर्मी जनहित के लिये किसी भी प्राण हर सकता है, उसे कोई पाप नहीं लगता-हमारी मनुस्मृति के अनुसार राजकमी के हाथ से हत्या होना अपराध नहीं है।
एक प्रहरी की हत्या के बाद आतंकियों तथा पुलिस के बीच युद्ध शुरु हुआ था उसमें नागरिक कानून काम नहीं कर पाता।
भारतीय अध्यात्मिक ग्रंथों का प्रभाव ऐसा उनके श्रवण से भी मानव मस्तिष्क में ज्ञान प्रवाह स्वतः हो ही जाता है। इसी कारण हिन्दू अपराधी हो या भलमानस कहीं न कहीं उसकी रक्तशिराओं में ब्रह्मज्ञान का तत्व बहता है। उसमें यह भाव सहजता से रहता है कि कल जो आजादी थी वह अपराध के कारण छिन गयी। जब अपराध का हिसाब भाग्य से पूरा हो जायेगा तब वह वापस भी मिल जायेगी। अपराध का दंड पूर्ण होने पर पुण्य के कारण अच्छे दिना स्वतः आते हैं।
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