क्रिकेट पर जब फिक्सिंग का विवाद चला तो हम यह मानकर चले कि यहां सब फिक्स ही चल रहा है। पर्दे पर जो दिख रहा है उसकी पहले ही पटकथा लिखकर समाचार या घटना की जाती है फिर उस पर बहसें चलती है। जिस तरह फिल्म के नायकों की छवि होती है उसी तरह के पात्र की भूमिका उनको नियमित रूप से मिलती है उसी तरह समाचारों के भी नायक और खलनायक तय किये जाते हैं। फिर उन पर बहसें होती हैं। हमने तमाम चैनल देख डाले। कभी नया विद्वान नज़र नहीं आता। वही घिसेपिटे चेहरे चले आते हैं। वही बातें दोहराते हैं। जिस तरह फिल्म का नाम के साथ नायक नायिका का नाम देखकर उसकी पूरी पटकथा समझ में आ जाती है। उसी तरह टीवी चैनल पर कथित विद्वानों की शक्ल देखकर अनुमान हो जाता है कि वह क्या कहेगा?
तलाक तलाक तलाक, सर्जिकल स्ट्राइक, पाक कलाकारों के भारतीय फिल्मों में काम तथा समान नागरिक संहिता जैसे विषयों पर सप्ताह से चर्चा के दौरान सभी टीवी चैनलों का समय खूब पास हो रहा है। विद्वान सभी वेतनभोगी बुलाये जाते हैं ताकि उतना ही बोलें जितना चैनल वाले चाहते हैं। नये तर्क, विचार और चिंत्तन का तो उनके पास सर्वथा अभाव होता है। इससे बेहतर तर्क तो फेसबुक और ट्विटर पर आम प्रयोक्ता लिख रहे हैं जिन्हें बुलाने का खतरा यह टीवी चैनल वाले उठा नहीं सकते। यह चैनल वाले उसी को बुलाते हैं जिसकी पूंछ कहीं दबी हुई हो ताकि वह विद्वान न माने तो उसके आका को पकड़ा जाये।
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सच्चा नास्तिक वही है जो स्वयं को देहधारी ही नहीं माने
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हमारी दृष्टि से सच्चा नास्तिक वह है जो माने कि वह स्वयं भी है है नहीं वरन् ब्रह्मा जी के सपने में चल रहे कल्पित देह का रूप है। अपना अस्तित्व नकारने वाला ही सच्चा नास्तिक है।
वैसे हम आस्तिक नास्तिक के विवाद से दूर हैं। यह भी पता नहीं कि हम क्या हैं-आस्तिक या नास्तिक। इतना जरूर मानते हैं कि जिस तरह हम रात को सपने में अनेक जीव देखते हैं पर जैसे ही निद्रा टूटती है पता लगता है कि वह सब गायब हो गये। उसी तरह कहा जाता है कि ब्रह्मा जी जब निद्रा में लीन होकर सपना देखते हैं तब यह संसार विभिन्न भूतों से चलता है और जैसे ही वह जागते हैं तो सब गायब हो जाते हैं। हम सोचते हैं कि हमारे सपने वाले जीव भी अपनी निद्रा अवधि में सांस लेते हैं और जागते ही गायब हो जाते हैं। ठीक उसी तरह ब्रह्मा जी की नींद खुलते ही सारे जीव गायब हो जायेंगे। मतलब अगर हम यह माने कि हमारे सपने के जीव नहीं होते तो यह भी कहना चाहिये कि उसी तरह हम भी नहीं होते। अगर वह होते हैं तो हम भी होते हैं। इसलिये हम आज तक नहीं तय कर पायें कि आस्तिक कहलायें या नास्तिक।
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